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________________ कौन है पूज्य ? अगर आप खड़े हो सकें, तो आप संन्यस्त हैं। अगर आप समय मांगें, तो आप गृहस्थ हैं / महावीर कहते हैं, संतोष पूज्य है, जो संतुष्ट है, वही पूज्य है। _ 'गुणों से ही मनुष्य साधु होता है, और अगुणों से असाधु / अतः हे मुमुक्षु! सदगुणों को ग्रहण कर और दुर्गणों को छोड़ / जो साधक अपनी आत्मा द्वारा अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानकर राग और द्वेष दोनों में समभाव रखता है, वही पूज्य है।' ___ गुणों से मनुष्य साधु होता है, घर छोड़ने से नहीं; वस्त्र छोड़ने से नहीं; पति, पत्नी, परिवार छोड़ने से नहीं; धंधा-दुकान, बाजार छोड़ने से नहीं / गुणों से व्यक्ति साधु होता है। लेकिन दुनिया के अधिक साधु गुण की फिकर नहीं करते, क्योंकि गुणों को बदलना कठिन है, जटिल है / परिस्थिति को बदलते हैं, मनःस्थिति को नहीं। जिसको भी साधु होने का खयाल हो जाता है, वह सोचता है, छोड़ो घर-द्वार; सच तो यह है कि घर-द्वार किसके सुखद हैं। जो रह रहे हैं, बड़े साधक हैं। जो भाग गये हैं. वे केवल इतनी ही खबर देते हैं कि कमजोर रहे होंगे। कमजोरी पलायन बन जाती है। महावीर का पलायन कमजोरी का पलायन नहीं है। महावीर कहते हैं : संसार छोड़ा जा सकता है, लेकिन शक्ति से, कमजोरी से नहीं। उस दिन संसार छोड़ना जिस दिन वह व्यर्थ हो जाये / लेकिन हम दुःख के कारण छोड़ते हैं, व्यर्थता के कारण नहीं। यह बड़ा फर्क है। महावीर संसार छोड़ते हैं, क्योंकि वहां कुछ है ही नहीं जिसको पकड़ने की जरूरत हो / सब व्यर्थ है। तो संसार ऐसे गिर जाता है जैसे सांप की केंचुली गिर जाती है और सांप आगे सरक जाता है। फिर सांप लौट-लौटकर नहीं देखता है कि कितनी बहुमूल्य केंचुल को छोड़ दिया...'अरे, कोई तो समझो! कोई तो आओ, देखो कि त्याग कर दिया! महात्यागी हूं, खोल छोड़ दी अपनी!' सांप खोल से बाहर निकल जाता है, खोल व्यर्थ हो गयी / महावीर कहते हैं : संसार छोड़ा जा सकता है, लेकिन तभी, जब संसार इतना व्यर्थ हो जाये कि छोडने-जैसा भी मालम न पडे। __ध्यान रहे, आपको वही चीज छोड़ने-जैसी मालूम पड़ती है, जो पकड़ने-जैसी मालूम पड़ती थी पहले। छोड़ने का खयाल, पकड़ने की वृत्ति का हिस्सा है। अगर एक-एक आदमी से हम पूछे कि अगर तुझे सच में पूरा मौका हो भागने का घर से, और कोई असुविधा नहीं आयेगी इससे बड़ी वहां जो यहां आ रही है, तो सभी लोग राजी हो जायेंगे। वे इसी डर से नहीं छोड़ते हैं कि छोड़कर जाओगे कहां? और जहां जाओगे वहां फिर असुविधाएं हैं। लेकिन कमजोर आदमी भाग जाता है। कमजोर आदमी दुखी की भाषा ही समझता है। ___ मैंने सुना है, एक बड़ी फर्म में मालिक कुछ इकसेंट्रिक-थोड़ा झक्की आदमी था; मौजी और झक्की, उसने अचानक एक दिन घोषणा की अपने सारे कर्मचारियों को इकट्ठा करके कि मैं तुम सबको तुम्हारी पेंशन का जो पुराना हिसाब था वह तो दूंगा ही और हर व्यक्ति को जब वह रिटायर होगा, तो उसको पचास हजार रुपये भी दूंगा। सब लोग लेने को राजी हैं, तो सब लोग महीने के भीतर दस्तखत कर दें फार्म पर / शर्त एक ही है : सबके दस्तखत होने चाहिये; अगर एक ने भी दस्तखत न किया तो यह नियम लागू न होगा ___ पर लोगों ने कहा, यह शर्त तो बड़ी मजेदार है, कौन दस्तखत न करेगा! लोगों का क्यू लग गया एकदम जल्दी दस्तखत करने को कि कहीं महीना न निकल जाये। पहले दिन ही सब लोगों ने, सिर्फ मुल्ला नसरुद्दीन को छोड़कर, दस्तखत कर दिये / मुल्ला नहीं आया। एक दिन, दो दिन, तीन दिन-आखिर लोग चिंतित होने लगे। लोगों ने कहा, 'भाई, दस्तखत क्यों नहीं कर रहे हो? मुल्ला ने कहा, 'दिस इज टू काम्पलिकेटेड, एन्ड आइ डोन्ट अंडरस्टैंड, एन्ड अनलेस आइ अंडरस्टैंड राइटली, आइ एम नाट गोइंग टु साइन / जरा जटिल है-यह पूरी योजना, और भरोसा भी नहीं आता, और समझ में भी नहीं बैठता कि कोई आदमी क्यों पचास हजार रुपये देगा? जरूर इसमें कोई चाल होगी। यह फंसा रहा है!' सब ने समझाया-मित्रों ने, आफिसर्स ने, मैनेजर ने, यूनियन के लोगों ने, लेकिन मुल्ला अपनी जिद्द पर अड़ा रहा कि मेरी कुछ 331 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340043
Book TitleMahavir Vani Lecture 43 Kaun hai Pujya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size94 MB
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