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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 पूरे वक्त जो नहीं है, वह चाहिये। जो है, वह व्यर्थ मालूम पड़ता है, और जो नहीं है, वह सार्थक मालूम पड़ता है / वह भी मिल जायेगा, उसको भी आप व्यर्थ कर लेंगे, क्योंकि आप कलाकार हैं। ऐसी कोई स्त्री नहीं है, जिसको आप एक न एक दिन तलाक देने को राजी न हों, क्योंकि तलाक स्त्री से नहीं आते, आपकी वृत्ति से आते हैं। जो आपके पास नहीं होता, वह पाने योग्य मालूम पड़ता है; जो आपके पास होता है, वह जाना-माना परिचित है; कुछ पाने योग्य मालूम नहीं होता। ऐसा पति अगर आप खोज लें, जो अपनी पत्नी को ही प्रेम किये जा रहा है, अनूठा है, साधु है। बड़ा कठिन है अपनी पत्नी को प्रेम करना; बड़ी साधना है। दूसरे की पत्नी के प्रेम में पड़ना एकदम आसान है। जो दूर है, वह आकर्षित करता है / दूर के ढोल ही सुहावने नहीं होते, दूर की सभी चीजें सुहावनी होती हैं। साधु का लक्षण है, संतोष / गृहस्थ का लक्षण है, अभाव / गृहस्थ उस पर आंख टिकाये रखता है, जो उसके पास नहीं है और जो उसके पास है वह बेकार है। साधु उस पर आंख रखता है, जो है; वही सार्थक है। जो नहीं है, उसका उसे विचार भी नहीं होता / जो है वही सार्थक है, ऐसी प्रतीति का नाम संतोष है। इसलिए जरूरी नहीं है कि आप घर-द्वार छोड़ें तब साधु हो पायेंगे। जो है, अगर आप उससे संतुष्ट हो जायें, तो साधुता आपके पास–जहां आप हैं वहीं आ जायेगी। संतष्ट जो हो जाए वह साध है। असाधता गिर गयी। लेकिन जिनको आप साध कहते हैं. वे भी संतष्ट नहीं हैं। हो सकता है उनके असंतोष की दिशा बदल गयी हो। वे कुछ नयी चीजों के लिए असंतुष्ट हो रहे हों, जिनके लिए पहले नहीं होते थे। मगर असंतुष्ट हैं। वहां भी बड़ी प्रतिस्पर्धा है। कौन महात्मा का नाम ज्यादा हुआ जा रहा है, तो बेचैनी शुरू हो जाती है। कौन महात्मा की प्रसिद्धि ज्यादा हई जा रही है, तो छोटे महात्मा उसकी निंदा में लग जाते हैं। क्योंकि उसे नीचे खींचना, सीमा में रखना जरूरी है। महात्माओं की बातें सनें तो बडी हैरानी होगी कि वे उसी तरह की चर्चाओं में लगे हए हैं, जैसे आम आदमी लगा हआ है। सिर्फ फर्क इतना है कि उनका धंधा जरा अलग है, इसलिए जब वे एक महात्मा के खिलाफ बोलते हैं तो आपको ऐसा नहीं लगता है कि कुछ गड़बड़ कर रहे हैं। लेकिन जब एक दुकानदार दूसरे दुकानदार के खिलाफ बोलता है तो आप समझते हैं कि कुछ गड़बड़ कर रहा है; नुकसान पहुंचाना चाहता है। उनकी भी आकांक्षाएं हैं। वहां भी चेष्टा बनी हुई है कि और...और... / ऐसा भी हो सकता है कि वे परमात्मा को पाने के लिए ही चिंतारत हों और सोच रहे हों, और परमात्मा कैसे मिले, और परमात्मा कैसे मिले? अभी एक समाधि मिल गयी है, अब और गहरी समाधि कैसे मिले? लेकिन ध्यान भविष्य पर लगा हुआ है, तो ग्राहस्थ्य ही चल रहा है। संन्यस्त का अर्थ है कि जो है, हम उससे इतने राजी हैं कि अगर अब कुछ भी न हो, तो असंतोष पैदा न होगा। - कठिन बात है! घर छोड़ना बड़ा आसान है, अभाव की दृष्टि छोड़ देना बड़ा कठिन है। जो मुझे मिला है, अगर मैं इसी वक्त मर जाऊं तो मरते क्षण में मुझे ऐसा नहीं लगेगा कि कोई चीज की कमी रह गयी, कि कुछ और पाने को था, अगर कल जिंदा रह जाता तो उसे भी पा लेता। ऐसी भावदशा कि मृत्यु अचानक आ जाये तो आपको बिलकुल राजी पाये, और आप कहें कि मैं तैयार हूं। क्योंकि जो होना था हो चुका, जो पाना था पा लिया, जो मिल सकता था मिल गया, मैं संतुष्ट हूं। इससे ज्यादा की कोई मांग न थी। जीवन अपने पूरे अर्थ को खोल गया है। __सोचें, अगर मृत्यु अभी आ जाये तो आपको राजी पायेगी? आप कहेंगे कि दो दिन तो ठहर जा! एक धंधे में पैसा उलझाया है, कम से कम नतीजे का तो पता चल जाये! कि लाटरी की टिकट खरीदी है, अभी परसों ही तो वह खुलनेवाली है, खबर आनेवाली है; कि लड़की का विवाह करना है; कि बेटा युनिवर्सिटी गया है; परीक्षा दे दी है, रिजल्ट खुलने को दो दिन हैं...या आप राजी पायेंगे? मौत आकर कहे कि तैयार हैं, आप खड़े हो जायेंगे कि चलता हूं? 330 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340043
Book TitleMahavir Vani Lecture 43 Kaun hai Pujya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size94 MB
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