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________________ साधना का सूत्र : संयम नहीं है, दमन ही है। क्योंकि दमन से ही चीजें फैल जाती हैं। भोग से भी ज्यादा उपद्रव खड़ा हो जाता है। अगर कामवासना उठती है और क्षणभर में निपट जाती है। और जागृति से दिनों सरकती है और सघन होने लगती है और मन पर बोझ बन जाती है, तो समझना कि जागति नहीं है, दमन ही है। हममें से बहुत से लोग ठीक से समझ नहीं पाते कि जागृति और दमन में क्या फर्क है? उसे समझ लें। दमन का मतलब है, जो भीतर उठा है, उसे भीतर ही दबा देना, बाहर न निकलने देना / भोग का अर्थ है; उसे बाहर निकलने देना किसी पर। फर्क समझ लें-दमन का अर्थ है, अपने पर दबा देना; भोग का अर्थ है, दूसरे पर निकाल लेना। जागृति तीसरी बात है-शून्य में निकाल लेना, न अपने पर दबाना, न दूसरे पर निकालना / शून्य में निकाल लेना। __समझें-क्रोध उठा, द्वार बन्द कर लें, एक तकिया अपने सामने रख लें और तकिये पर पूरी तरह क्रोध निकाल लें। जितनी आग उबल रही हो, जो-जो करने का मन हो रहा हो, चूंसा मारना हो, पीटना हो तकिये को, पीटें / उसके ऊपर गिरना हो, गिरें, चीड़ना-फाड़ना हो, चीड़ें-फाड़ें। काटना हो, काटें / जो भी करना हो, पूरी तरह कर लें। और यह करते वक्त पूरा होश रखें कि मैं क्या कर रहा हूं, मुझसे क्या-क्या हो रहा है। इसको ठीक से समझ लें। यह करते वक्त पूरा होश रखें कि मेरे दांत काटना चाह रहे हैं और मैं काट रहा हूं। मन कहेगा कि यह क्या बचकानी बात कर रहे हो, इसमें क्या सार है? यह वह मन बोल रहा है, जो कह रहा है, असली आदमी को काटो तो सार है, असली आदमी को मारो तो सार है। लेकिन आपको पता है कि घूसा चाहे आप तकिये में मारें और चाहे असली आदमी में, भीतर की जो प्रक्रिया है, वह बराबर एकसी हो जाती है, उसमें कोई फर्क नहीं है। शरीर में जो क्रोध के अणु फैल गये खून में, वह तकिये में मारने से भी उसी तरह निकल जाते हैं जैसा असली आदमी में मारने से निकलते हैं / हां असली आदमी में मारने से शृंखला शुरू होती है, क्योंकि अब उसका भी क्रोध जगेगा। अब वह भी आप पर निकालना चाहेगा / तकिया बड़ा ही संत है। वह आप पर कभी नहीं निकालेगा / वह पी जायेगा। अगर आप महावीर को मारने पहुंच जाते तो जिस तरह वे पी जाते, उसी तरह यह तकिया पी जायेगा। आपको दबाना भी न पडेगा, रोकना भी नहीं पड़ेगा और निकालने भी किसी पर नहीं जाना पड़ेगा। ___ इसको ठीक से समझ लें, तो कैथार्सिस, रेचन की प्रक्रिया समझ में आ जायेगी, रेचन में ही जागरण आसान है। यह है रेचन, निकालना। और आप सोचते होंगे कि हमसे नहीं निकलेगा तो आप गलत सोचते हैं। मैं सैकड़ों लोगों पर प्रयोग करके कह रहा हूं-आप ही जैसे लोगों पर, बहुत दिल खोलकर निकलता है। सच तो यह है कि दूसरे पर निकालने में थोड़ा दमन तो हो ही जाता है। पूरा नहीं निकल पाता / तो वह जो थोड़ा दमन हो जाता है, वह जहर की तरह घूमता रहता है। दूसरे पर दिल खोलकर कभी निकाला ही नहीं जा सकता, क्योंकि कितना ही बुरा आदमी हो, फिर भी दूसरे आदमी के साथ कितना निकाल सकता है। ___ एक युवक पर मैं प्रयोग कर रहा था, तो वह पहले तो हंसा / उसने कहा कि आप भी कैसी मजाक करते हैं, तकिये पर ! मैंने उससे कहा, मजाक ही सही, तुम शुरू तो करो / पहले तो वह हंसा, थोड़ा उसने कहा कि यह तो एक्टिंग हो जायेगी, अभिनय हो जायेगा / मैंने कहा, होने दो। दो मिनट बाद गति आनी शुरू हो गयी। पांच मिनट बाद वह पूरी तरह तल्लीन था। ___ पांच दिन के भीतर तो वह इतना आनंदित था उस तकिये के साथ, और उसने मुझे तीसरे दिन बताया कि यह चकित होनेवाली बात है। अब मेरा क्रोध मेरे पिता पर है, सारा क्रोध / और अब मैं तकिये में तकिये को नहीं देख पाता, मुझे पिता पूरी तरह अनुभव होने लगे। 165 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340036
Book TitleMahavir Vani Lecture 36 Sadhna ka Sutra Sanyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size72 MB
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