SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 2 सातवें दिन वह एक छुरा लेकर आ गया। मैंने कहा, यह छरा किसलिए ले आये हो? उसने कहा कि अब रोकें मत / जब कर ही रहा हूं तो अब पूरा ही कर लेने दें। जब इतना निकला है, और मैं इतना हल्का हो गया हूं, तो पिता की हत्या करने का मेरे मन में न मालूम कितनी दफे खयाल आया। अपने को दबा लिया हूं कि यह तो बड़ी गलत बात है, पिता और हत्या ! __वह लड़का अमरीका से हिन्दुस्तान आया सिर्फ इसलिए कि पिता से इतनी दूर चला जाये कि कहीं हत्या न कर दे। फिर उसने पिता की हत्या कर दी सिंबालिक / छुरा लेकर उसने तकिये को चीर फाड़ डाला, हत्या कर डाली। उस युवक का चेहरा देखने लायक था। जब वह पिता की हत्या कर रहा था और जब मैंने उसे आवाज दी कि अब तू होशपूर्वक कर, तो वह दूसरा ही आदमी हो गया, तत्काल। इधर हत्या चलती रही बाहर, उधर भीतर एक होश का दीया भी जलने लगा। वह अपने को देख पाया। अपनी पूरी नग्नता में, अपनी पूरी पशुता में। और सात दिन के इस प्रयोग के बाद अब वह होश रख सकता है क्रोध में, अब तकिये पर मारने की जरूरत नहीं है। अब क्रोध आता है तो आंख बन्द कर लेता है। अब वह क्रोध को देख सकता है सीधा / अब तकिये के माध्यम की कोई जरूरत न रही। क्योंकि असली माध्यम से नकली माध्यम चुन लिया। अब नकली माध्यम से गैर-माध्यम पर उतरा जा सकता है। तो जिनको भी क्रोध का दमन करना हो, अगर वे जागृति का उपयोग कर रहे हों तो उनको जागृति से कोई संबंध नहीं है। वह सिर्फ क्रोध को दबाना चाह रहे हैं। जिन्हें क्रोध का विसर्जन करना हो, उन्हें क्रोध का प्रयोग करना चाहिए, क्रोध पर ध्यान करना चाहिए। अकेले महावीर ने सारे जगत में दो ध्यानों की बात की है, जिसको किसी और ने कभी ध्यान नहीं कहा / महावीर ने चार ध्यान कहे हैं। दो ध्यान, जिनसे ऊपर उठना है, और दो ध्यान, जिनमें जाना है। दुनिया में ध्यान की बात करनेवाले लाखों लोग हुए हैं, लेकिन महावीर ने जो बात कही है वह बिलकुल उनकी है, वह किसी ने भी नहीं कही। ___ महावीर ने कहा है, दो ध्यान ऐसे, जिनके ऊपर जाना है, और दो ध्यान ऐसे, जिनमें जाना है। तो हम सोचते हैं, ध्यान हमेशा अच्छा होता है। महावीर ने कहा, दो बुरे ध्यान भी हैं / उनको महावीर कहते हैं, आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान, दो बुरे ध्यान, यह ठीक सन्तुलन हो जाता है दो भले ध्यान का। भले ध्यान को महावीर कहते हैं-धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान / चार ध्यान हैं / रौद्र ध्यान का अर्थ है क्रोध, आर्त ध्यान का अर्थ है दुख। जब आप दुख में होते हैं तब आपको पता है, चित्त एकाग्र हो जाता है। कोई मर गया, उस वक्त आपका चित्त बिलकुल एकाग्र हो जाता है। आपका प्रेमी मर गया। जितना जिन्दे थे वे, तब उन पर कभी एकाग्र नहीं हुआ। अब मर गये तो उन पर चित्त एकाग्र हो जाता है। अगर जिन्दे थे, तभी इतना चित्त एकाग्र कर लेते तो शायद उन्हें मरना भी न पड़ता इतनी जल्दी ! लेकिन जिन्दे में चित्त कहीं कोई एकाग्र होता है? मर गये, इतना धक्का लगता है कि सारा चित्त एकाग्र हो जाता है। दुख में आदमी चित्त एकाग्र कर लेता है। क्रोध में भी आदमी का चित्त एकाग्र हो जाता है। क्रोधी आदमी को देखो, क्रोधी आदमी बड़े ध्यानी होते हैं / जिस पर उनका क्रोध है, सारी दुनिया मिट जाती है, बस वही एक बिन्दु रह जाता है / और सारी शक्ति उसी एक बिन्दु की तरफ दौड़ने लगती है। क्रोध में एकाग्रता आ जाती है। महावीर ने कहा है, ये भी दोनों ध्यान हैं / बुरे ध्यान हैं, पर ध्यान हैं / अशुभ ध्यान हैं, पर ध्यान हैं। इनसे ऊपर उठना हो तो इनको करके इनमें जागकर ही ऊपर उठा जा सकता है। ___ जब दुख हो, द्वार बन्द कर लें। दिल खोलकर रोयें, पीटें, छाती पीटें, जो भी करना हो करें। किसी दूसरे पर न निकालें / हम दुख भी दूसरे पर निकालते हैं। इसलिए अगर लोगों की चर्चा सुनो तो लोग अपने दुख एक दूसरे को सुनाते रहते हैं। यह निकालना है। लोगों की चर्चा का नब्बे प्रतिशत दुखों की कहानी है। अपनी बीमारियां, अपने दुख, अपनी तकलीफें, दूसरे पर निकाल रहे हैं। मन-लोग कहते हैं, कह देने से हल्का हो जाता है / आपका हो जाता होगा, दूसरे का क्या होता है, इसका भी तो सोचें / आप हल्के 166 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340036
Book TitleMahavir Vani Lecture 36 Sadhna ka Sutra Sanyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size72 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy