________________ साधना का सूत्र : संयम होकर घर आ गये और उनको जिनको फंसा आये आप? इसलिए लोग दूसरे के दुख की बातें सुनकर भी अनसुनी करते हैं, क्योंकि वे अपना बचाव करते हैं। आप सुना रहे हैं, वे सुन रहे हैं, लेकिन सुनना नहीं चाहते। ___ जब आपको लगता है कि कोई आदमी बोर कर रहा है तो उसका कुल मतलब इतना ही होता है कि वह कुछ सुनाना चाह रहा है, निकालना चाह रहा है, हल्का होना चाह रहा है और आप भारी नहीं होना चाह रहे हैं। आप कह रहे हैं, क्षमा करो। या यह हो सकता है कि आप खद ही उसको बोर करने का इंतजाम किये बैठे थे, वह आपको कर रहा है। दुख भी दूसरे पर मत निकालें / दुख को भी एकांत ध्यान बना लें। क्रोध भी दूसरे पर मत निकालें, एकांत ध्यान बना लें। शून्य में होने दें विसर्जन और जागरूक रहे-होशपूर्वक / आप थोड़े ही दिन में पायेंगे कि एक नयी जीवन दिशा मिलनी शुरू हो गयी, एक नया आयाम खुल गया। दो आयाम थे अब तक–दबाओ, या निकालो। अब एक तीसरा आयाम मिला, विसर्जन / यह तीसरा आयाम मिल जाये तो ही आपका होश सधेगा, और होश से अस्त-व्यस्तता न आयेगी। और जीवन ज्यादा शांत, ज्यादा मौन, ज्यादा मधुर हो जायेगा। अगर आपने दमन कर लिया होश के नाम पर, तो जीवन ज्यादा कड़वा, ज्यादा विषाक्त हो जायेगा। अगर मुझसे पूछते हो कि अगर भोग और दमन में ही चुनना हो तो मैं कहूंगा, भोग चुनना, दमन मत चुनना / क्योंकि दमन ज्यादा खतरनाक है। उससे तो भोग बेहतर / लेकिन मैं यह नहीं कह रहा हूं कि भोग चुनना / इन दोनों से भी बेहतर एक है विसर्जन / अगर विसर्जन चुन सकें, तो ही भोग छोड़ना / अगर विसर्जन न चुन सकें तो भोग ही कर लेना बेहतर है। तब वह मित्र ठीक कहते हैं कि पांच मिनट में क्रोध निकल जाता है। फिर देखेंगे जब दुबारा, जब दूसरा आदमी निकालेगा, देखा जायेगा। फिलहाल शांति हुई। लेकिन अगर दबा लें तो वह चौबीस घण्टे चलता ___ और ध्यान रखें, कोई भी दबायी हुई चीज की मात्रा उतनी ही नहीं रहती जितनी आप दबाते हैं / वह बढ़ती है, भीतर बढ़ती चली जाती है। जैसे आप पत्नी पर नाराज हो गये। अब आपने क्रोध दबा लिया। अब आप दफ्तर गये, अब चपरासी जरा सी भी बात कहेगा, जो कल बिलकुल चोट नहीं खाती, आज चोट दे देगी। उसको भी दबा गये। आपने मात्रा बढ़ा ली / अब आपका मालिक बुलाता है और कुछ कहता है। वह कल आपको बिलकुल नहीं अखरती थी उसकी बात, आज उसकी आंख अखरती है, उसका ढंग अखरता है। वह आपके भीतर जो इकट्ठा है, वह कलर दे रहा है आपकी आंखों को / रंग दे रहा है। अब उस रंग में सब उपद्रव दिखाई पड़ता है। यह आदमी दुश्मन मालूम पड़ता है। वह जो भी कहता है, उससे क्रोध और बढ़ता है। वह भी आपने इकट्ठा कर लिया। ___ वह सुबह आप लेकर पत्नी से चले गये थे दफ्तर, सांझ जब आप लौटते हैं तो जो बीज था, वह वृक्ष हो गया। सुबह ही निकाल लिया होता तो मात्रा कम होती, सांझ निकलेगा अब मात्रा काफी होगी। और यह अन्याययुक्त होगा। सुबह तो हो सकता था, न्यायपूर्ण भी होता / इसमें दूसरों पर भी जो क्रोध होता है, वह भी संयुक्त हो गया। __दबायें मत, उससे तो भोग लेना बेहतर है। इसलिए जो लोग भोग लेते हैं, वे सरल लोग होते हैं। बच्चों को देखें, उनकी सरलता यही है। क्रोध आया, क्रोध कर लिया / खुशी आयी खुशी कर ली, लेकिन खींचते नहीं / इसलिए जो बच्चा अभी नाराज हो रहा था कि दुनिया को मिटा देगा, ऐसा लग रहा था, थोड़ी देर बाद गीत गुनगुना रहा है। निकाल दिया जो था, अब गीत गुनगुनाना ही बचा / आप न दुनिया को मिटाने लायक उछल कूद करते हैं और न कभी तितलियों जैसा उड़ सकते हैं और न पक्षियों जैसा गीत गा सकते हैं। आप अटके रहते हैं बीच में। धीरे-धीरे आप मिक्सचर, एक खिचड़ी हो जाते हैं सब चीजों की / जिसमें न कभी क्रोध निकलता शुद्ध, न कभी प्रेम निकलता शुद्ध, क्योंकि शुद्ध कुछ बचता ही नहीं। सब चीजें मिश्रित हो जाती हैं। और यह जो मिश्रित आदमी है, यह रुग्ण और बीमार आदमी है, पैथोलाजिकल है। इसके प्रेम में भी क्रोध होता है / इसके क्रोध में भी प्रेम भर जाता है / यह अपने दुश्मन से भी प्रेम करने 167 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org