________________ महावीर-वाणी भाग : 2 लगता है, अपने मित्र से भी घृणा करने लगता है। इसका सब एक दूसरे में घोल-मेल हो जाता है, इसमें कोई चीजें साफ नहीं होती। बच्चे साफ होते हैं। जो करते हैं, उसी वक्त कर लेते हैं। फिर दूसरी चीज में गति कर जाते हैं, फिर पीछे नहीं ले जाते / हम साफ नहीं होते / और जैसे-जैसे आदमी बूढ़ा होने लगता है वैसे-वैसे सब गड्ड-मड्ड हो जाता है / आत्मा नाम की कोई चीज उनके भीतर नहीं रहती है-एक गड्ड-मड्ड, कन्फ्यू जन। ___ भोग चुन लें, अगर दमन करना हो तो। दमन तो कतई बेहतर नहीं है। लेकिन भोग दुख देगा / दमन दुख देगा। भोग कम देगा शायद, लम्बे अर्से में देगा शायद, टुकड़े-टुकड़े में, खण्ड-खण्ड में, अलग-अलग मात्रा में देगा शायद / दमन इकट्ठा दे देगा, भारी कर देगा, लेकिन दोनों दुखदायी हैं। मार्ग तो तीसरा है, विसर्जन—न भोग, न दमन / यह जो विसर्जन है, यह है शून्य में वृत्तियों का रेचन, और जब आप शून्य में करते हैं तो जागना आसान है, जब आप किसी पर करते हैं तो जागना आसान नहीं है। जब आप किसी को घूसा मारते हैं, तो आपको दूसरे पर ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि चूंसे का उत्तर आयेगा / जब आप तकिये को घुसा मारते हैं तो अपने पर पूरा ध्यान रख सकते हैं, क्योंकि तकिये से कोई घुसा नहीं आ रहा। अपने पर ध्यान रखें और रेचन हो जाने दें। धीरे-धीरे ध्यान बढ़ता जायेगा और रेचन की कोई जरूरत न रह जायेगी। एक दिन आप पायेंगे, भीतर क्रोध उठता है, होश भी साथ में उठता है। होश के उठते ही क्रोध विसर्जित हो जाता है। अभी जिसे आप होश समझ रहे हैं वह होश नहीं है, दमन की ही एक प्रक्रिया है। रेचन के माध्यम से होश को साधे। एक छोटा-सा प्रश्न और। एक बहन ने लिखा है कि जब भी मैं आंख बन्द करके शून्य में खो जाना चाहती हूं, तभी थोड़ी देर शांति महसूस होती है और फिर भीतर घना अंधेरा छा जाता है। प्रकाश का कब अनुभव होगा? क्या कभी कोई प्रकाश की किरण दिखायी न पड़ेगी? थोड़ा समझ लें पहली तो बात यह, अंधेरा बुरा नहीं है। और ऐसी जिद्द मत करें कि प्रकाश का ही अनुभव होना चाहिए। आपकी कोई भी जिद्द, कि यह अनुभव होना चाहिए, बाधा है गहराई में जाने में / गहराई में जाना हो तो जो अनुभव हो, उसको पूरे आनन्द से स्वीकार कर लेना चाहिए। अंधेरे को स्वीकार कर लें, अंधेरे का अपना आनन्द है। किसने कहा कि अंधेरे में दुख है? अंधेरे की अपनी शांति है, अंधेरे का अपना मौन है, अंधेरे का अपना सौन्दर्य है / किसने कहा? लेकिन हम जीते हैं धारणाओं में / अंधेरे से हम डरते हैं, क्योंकि अंधेरे में पता नहीं कोई छरा मार दे, जेब काट ले। इसलिए बच्चे को हम अंधेरे से डराने लगते हैं। धीरे-धीरे बच्चे का मन निश्चित हो जाता है कि प्रकाश अच्छा है, अंधेरा बुरा है। क्योंकि प्रकाश में कम से कम दिखायी तो पड़ता है ! ___ मैं एक प्रोफेसर के घर रुकता था। उनका लड़का नौ साल का हो गया। उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ समझायें इसको, इसको रात में भी पाखाना जाना हो—पुराना ढंग का मकान, बीच में आंगन, उस तरफ पाखाना-तो इसके साथ जाना पड़ता है। इतना बड़ा हो गया, अब अकेला जाना चाहिए। रात में इसके पीछे कोई जाये और दरवाजे के बाहर खड़ा रहे तो ही यह जा सकता है। तो मैंने उस लड़के से कहा कि अगर तुझे अंधेरे का डर है तो लालटेन लेकर क्यों नहीं चला जाता? उस लड़के ने कहा, खूब कह रहे हैं आप / अंधेरे में तो मैं किसी तरह भूत-प्रेत से बच जाता हूं, लालटेन में तो वे सब मुझे देख ही लेंगे। अंधेरे में तो मैं ऐसा चकमा देकर, इधर-उधर से निकल जाता हूं। ___ धारणाएं बचपन से हम निर्मित करते जाते हैं, कुछ भी, चाहे भूत-प्रेत की, चाहे प्रकाश की, चाहे अंधेरे की / फिर वे धारणाएं हमारे मन में गहरी हो जाती हैं। फिर जब हम अध्यात्म की खोज में चलते हैं तब भी उन्हीं धारणाओं को लेकर चलते हैं। उससे भूल होती 168 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.