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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 सार्थक की ओर इशारा है। और यहां अगर असदगुरु हैं, तो वे भी पृष्ठभूमि का काम करते हैं, जिनमें सदगुरु चमककर दिखायी पड़ जाते हैं, नहीं तो वह भी दिखायी नहीं पड़े। जिन्दगी विरोध से निर्मित है / सत्य की खोज असत्य के मार्ग से भी होती है। सही की खोज भूल के द्वार से भी होती है। इसलिए भयभीत न हों, अभय रखें और खुले रहें / भय की वजह से आदमी बन्द हो जाता है। वह डरा ही रहता है कि ऐसा न हो कि किसी गलत आदमी से जोड़ हो जाये / इस भय से वह बन्द ही रह जाते हैं। बन्द आदमी का, गलत आदमी से तो जोड़ नहीं होता, सही आदमी से भी कभी जोड़ नहीं होता। खुले आदमी का गलत आदमी से जोड़ होता है, लेकिन जो खुला है, वह जल्दी ही गलत आदमी के पार चला जाता है। और खले होने के कारण और गलत के पार होने के अनुभव से जल्दी ही सही के निकट होने लगता है। इतना स्मरण रखें, सदगुरु आपको चुन ही लेगा। वह सदा मौजूद है। शायद आपके ठीक पड़ोस में हो। एक दिन हसन ने परमात्मा से प्रार्थना की कि दनिया में सबसे बरा आदमी कौन है, बड़े से बड़ा पापी? रात उसे स्वप्न में संदेश आया. तेरा पड़ोसी इस समय दुनिया में सबसे बड़ा पापी है। हसन बहुत हैरान हुआ। पड़ोसी बहुत सीधा-सच्चा आदमी था। साधारण आदमी था। कोई पाप...ऐसी कोई खबर नहीं थी, कोई अफवाह भी न थी। बड़ा चकित हुआ कि पापी पास में है जगत का सबसे बड़ा, और मुझे अब तक कोई पता न चला। उसने उस रात दूसरी प्रार्थना की कि एक प्रार्थना और मेरी पूरी कर / इस जगत में सबसे बड़ा पुण्यात्मा, सबसे बड़ा ज्ञानी, सबसे बड़ा सन्त पुरुष कौन है? एक तो तूने बता दिया, अब दूसरा भी बता दें। रात संदेश आया कि तेरा दूसरा पड़ोसी। एक तरफ बाईं तरफवाला कल था, दाईं तरफवाला आज है / वह दुनिया में सबसे बड़ा ज्ञानी और सबसे बड़ा रहस्यदर्शी है। हसन तो हैरान हो गया। यह भी एक साधारण आदमी था। एक चमार था जो जूते बेचता था। यह पहलेवाले आदमी से भी साधारण था। हसन ने तीसरी रात फिर प्रार्थना की कि परमात्मा, तू मुझे और उलझनों में डाल रहा है / पहले हम ज्यादा सुलझे हुए थे, तेरे इन उत्तरों से हम और मुसीबत में पड़ गये। कैसे पता लगे कि कौन अच्छा है, कौन बुरा है? तो तीसरे दिन संदेश आया कि जो बन्द हैं, उन्हें कुछ भी पता नहीं चलता। जो खुले हैं, उन्हें सब पता चल जाता है। तू एक बन्द आदमी है, इसलिए दोनों तरफ तेरे पड़ोस में लोग मौजूद हैं, नरक और स्वर्ग तेरे पड़ोस में मौजूद हैं और तुझे पता नहीं चला / तू बन्द आदमी है। तू खुला हो, तो तुझे पता चल जायेगा। खुला होना खोज है। आपका मस्तिष्क एक खुला मस्तिष्क हो, जिसमें कहीं कोई दरवाजे बन्द नहीं, ताले नहीं डाल रखे हैं आपने, जहां से हवाएं गुजरती हैं ताजी, रोज / जहां सूरज की किरणें प्रवेश करती हैं, जहां चांद की चांदनी भी आती है। जहां वर्षा हो तो उसकी बूंदें भी पड़ती हैं। जहां धूप निकले तो भीतर रोशनी पहुंचती है। बाहर अंधेरा हो तो अंधेरा भी भीतर प्रवेश करता है। मन आपका एक खुला आकाश हो, तो सदगुरु आपको चुन लेगा। सदगुरु ही चुनता है। __ एक दूसरे मित्र ने पूछा है-जागृति की, होश की साधना में भय का जन्म हो जाता है, और हर समय डर लगता रहता है कि जीवन-चर्या अस्त-व्यस्त न हो जाये। फिर ऐसा भी लगता है कि क्रोध, काम आदि उठते हैं, तो कर लेने से पांच-सात मिनट में निपट जाते हैं। उनसे मुक्ति हो जाती मालूम पड़ती है। न करो तो दिनों तक उनकी प्रतिध्वनि, उनकी तरंगें भीतर गूंजती रहती हैं। और तब ऐसा लगता है कि इससे तो कर ही लिया होता तो निपट गये होते / तो क्या करें? ऐसी जागृति दमन नहीं है? दो बातें हैं—एक तो, अगर, जागति से क्रोध-जो पांच मिनट में निपट जाता है, दो दिन चल जाता है, तो समझना कि वह जागति 164 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340036
Book TitleMahavir Vani Lecture 36 Sadhna ka Sutra Sanyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size72 MB
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