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________________ साधना का सूत्र : संयम जापान में झेन गुरु अपने शिष्यों को एक दूसरे के पास भी भेज देते हैं / यहां तक भी हो जाता है कभी कि एक सदगुरु जो दूसरे सदगुरु के बिलकुल सैद्धान्तिक रूप से विपरीत है, विरोध में है, जो उसका खण्डन करता रहता है, वह भी कभी अपने किसी शिष्य को उसके पास भेज देता है। और कहता है कि अब तु वहां जा। __ बोकोजू के गुरु ने उसे अपने विरोधी सदगुरु के पास भेज दिया / बोकोजू ने कहा कि आप अपने शत्रु के पास भेज रहे हैं / और अब तक तो मैं यही सोचता था, कि वह आदमी गलत है। तो बोकोजू के गुरु ने कहा, हमारी पद्धतियां विपरीत हैं। कभी मैंने कहा नहीं कि वह गलत है। इतना ही कहा कि उसकी पद्धति गलत है / पद्धति उसकी भी गलत नहीं है, लेकिन मेरी पद्धति समझने के लिए उसकी पद्धति को जब मैं गलत कहता हूं तो तुम्हें आसानी होती है। और मेरी पद्धति जब वह गलत कहता है तो उसके पास जो लोग बैठे हैं, उन्हें समझने में आसानी होती है; कंट्रास्ट, विरोध से आसानी हो जाती है। जब हम कहते हैं, फलां चीज सही है और फलां चीज गलत है तो काले और सफेद की तरह दोनों चीजें साफ हो जाती हैं। लेकिन बोकोजू, तू वहां जा, क्योंकि तेरे लिए वही गुरु है। मेरी पद्धति तेरे काम की नहीं / लेकिन किसी को यह बताना मत / जाहिर दुनिया में हम दुश्मन हैं, और भीतरी दुनिया में हमारा भी एक सहयोग है। __ बोकोजू दुश्मन गुरु के पास जाकर दीक्षित हुआ, ज्ञान को उपलब्ध हुआ। जिस दिन ज्ञान को उपलब्ध हुआ, उसके गुरु ने कहा, अपने हले गुरु को जाकर धन्यवाद दे आ, क्योंकि उसने ही तुझे मार्ग दिखाया। मैं तो निमित्त हुँ / उसने ही तुझे भेजा है। असली गुरु तेरा वही है। अगर वह असदगुरु होता तो तुझे रोक लेता / सदगुरु था इसलिए तुझे मेरे पास भेजा है। लेकिन किसी को कहना मत / जाहिर दुनिया में हम दुश्मन हैं। पर वह दुश्मनी भी हमारा षड्यंत्र है। उसके भीतर एक गहरी मैत्री है। मैं भी वहीं पहुंचा रहा हूं लोगों को, जहां वह पहुंचा रहा है। मगर यह किसी को बताने की बात नहीं है। हमारा जो खेल चल रहा है, उसको बिगाड़ने की कोई जरूरत नहीं है। ___एक अन्तर्जगत है रहस्यों का, उसका आपको पता नहीं है। इतना ही आप कर सकते हैं कि आप खुले रहें। आपकी आंख बन्द न हो। और आप इतने ग्राहक रहें कि जब कोई आपको चुनना चाहे, और कोई चुम्बक आपको खींचना चाहे तो आपसे कोई प्रतिरोध न पड़े। एक दिन आप सदगुरु के पास पहुंच जायेंगे। यह तैयारी अगर हुई तो आप पहुंच जायेंगे। थोड़ी बहुत भटकन बुरी नहीं है। और ऐसा मत सोचें कि भटकना बुरा ही है। भटकना भी एक अनुभव है। और भटकने से भी एक प्रौढ़ता, एक मेच्योरिटी आती है। जिन गुरुओं को आप व्यर्थ समझकर छोड़कर चले जाते हैं, उनसे भी आप बहुत कुछ सीखते हैं। जिनसे आप कुछ भी नहीं सीखते, उनसे भी कछ सीखते हैं। जिनको आप व्यर्थ पाते हैं. अपने काम का नहीं पाते और हट जाते हैं. वे भी आपको निर्मित करते जिन्दगी बड़ी जटिल व्यवस्था है, और उसका सृजन का जो काम है, उसके बहु आयाम हैं। भूल भी ठीक की तरफ ले जाने का मार्ग है। इसलिए भूल करने से डरना नहीं चाहिए, नहीं तो कोई आदमी ठीक तक कभी पहुंचता नहीं। भूल करने से जो डरता है वह भूल में ही रह जाता है। वह कभी सही तक नहीं पहुंच पाता / खूब दिल खोलकर भूल करनी चाहिए / एक ही बात ध्यान रखनी चाहिए कि एक ही भूल दुबारा न हो / हर भूल इतना अनुभव दे जाये कि उस भूल को हम दुबारा नहीं करेंगे, तो फिर हम धन्यवाद दे सकते हैं उसको भी, जिससे भूल हुई, जिसके द्वारा हुई, जिसके कारण हुई, जिसके साथ हुई, जहां हुई; उसको भी हम धन्यवाद दे सकते हैं। लेकिन कुछ लोग जीवन की, सृजन की, जो बड़ी प्रक्रिया है उसको नहीं समझते / वे कहते हैं, आप तो सीधा-साधा ऐसा बता दें कि कौन है सदगुरु? हम वहां चले जायें। आपको जाना पड़ेगा। __ भूल, भटकन अनिवार्य हिस्सा है। थोड़ी-सी भूलें कर लेने से आपकी गहराई बढ़ती है। और भूलें करके ही आपको पता चलता है कि ठीक क्या होगा। इसलिए असदगुरु का भी थोड़ा-सा उपयोग है। वह भी बिलकुल व्यर्थ नहीं है। एक बात ध्यान रखें कि परमात्मा के इस विराट आयोजन में कुछ भी व्यर्थ नहीं है। यहां जो आपको व्यर्थ दिखायी पड़ता है, वह भी 163 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340036
Book TitleMahavir Vani Lecture 36 Sadhna ka Sutra Sanyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size72 MB
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