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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 जरूरत नहीं है। यह भी खुद की बुद्धि से आयी हुई बात नहीं है। यह भी एक गुरु की शिक्षा है कि गुरु की कोई भी जरूरत नहीं है। इसको भी जो स्वीकार कर रहा है, उसने गुरु को स्वीकार कर लिया। लेकिन करोड़ों में कभी एकाध आदमी जरूर ऐसा होता है, वह भी अनंत जन्मों की यात्रा के बाद / उसे पता हो या न हो। __ कल ही एक मित्र मलाया से मुझे मिलने आये। तो मलाया में एक महत्वपूर्ण घटना घटी है, सुबुह / और मुहम्मद सुबुह नाम के एक व्यक्ति पर अचानक, अनायास प्रभु की ऊर्जा का अवतरण हुआ / लेकिन मुसलमान मानते हैं कि एक ही जन्म है / इसलिए मुहम्मद सुबुह को भी लगा कि मुझ साधारण आदमी पर परमात्मा की कृपा हुई है। उनके माननेवाले भी यही मानते हैं कि यह सिर्फ एक संयोग की बात है कि मुहम्मद सुबुह चुना गया। मैंने उनसे कहा, हम ऐसा नहीं मान सकते। कोई आकस्मिक घटना नहीं होती / सिर्फ मुसलमान थियोलाजी के कारण पाक सुबुह को लगता है कि अचानक मुझ पर प्रभु की कृपा हुई। लेकिन यह जन्मों-जन्मों की साधना का परिणाम है, नहीं तो यह हो नहीं सकता। तो जब कभी कोई व्यक्ति अचानक भी संकल्प की स्थिति में आ जाता है, तब भी वह यह न सोचे कि गुरुओं का हाथ नहीं है। हजारों-हजारों गुरुओं का हजारों-हजारों जन्मों में हाथ है। ___ पानी को कोई गरम करता है, सौ डिग्री पर भाप बनता है, निन्यानबे डिग्री तक तो भाप नहीं बनता। लेकिन जिस अंगार ने निन्यानबे तक पहुंचाया है, उसके बिना सौवीं डिग्री भी नहीं आती। सौवीं डिग्री पर भाप बनकर उड़ता हुआ पानी सोच सकता है कि निन्यानबे डिग्री तक तो मैं कुछ भी नहीं था, सिर्फ पानी था / यह जो घटना घट रही है, अचानक घट रही है, लेकिन शून्य डिग्री से सौ डिग्री तक की जो लम्बी यात्रा है, उस यात्रा में न मालूम कितने ईंधन ने साथ दिया है। आखिरी घटना आकस्मिक घटती मालूम होती है; लेकिन इस जगत में कुछ आकस्मिक नहीं है। नहीं तो विज्ञान का कोई उपाय न रह जायेगा। हिन्दू चिन्तन इसलिए बहुत गहरा गया है और उसने कहा कि इस जगत में कुछ भी आकस्मिक नहीं है। अगर कृष्णमूर्ति अचानक ज्ञान को उपलब्ध होते हैं तो यह भी अचानक हमें लगता है। या पाक सबह पर अचानक प्रभ की अनुकम्पा मालम होती है, तो यह भी हमें लगता है, अचानक हआ। जन्मों-जन्मों की तैयारी है। __निन्यानबे प्वाइंट नौ तक भी पानी, पानी ही होता है। फिर एक प्वाइंट और भाप हो जाता है। तो पाक सुबुह को निन्यानबे प्वाइंट नौ तक भी पता नहीं है कि भाप बनने का क्षण करीब आ गया। जब भाप बनेंगे, तभी पता चलेगा। तब एकदम आकस्मिक लगेगा, कि क्षणभर पहले मैं एक साधारण दुकानदार था, कि साधारण कर्मचारी था, एक साधारण आदमी था, बाल-बच्चेवाला, पत्नीवाला, कुछ पता नहीं था, अचानक यह क्या हो गया? यह भी अचानक नहीं है। पीछे कार्य-कारण की लम्बी श्रृंखला है, और वह लम्बी है श्रृंखला, बहुत लम्बी है। ___ तो हजारों जन्मों के बाद कभी कोई व्यक्ति इस हालत में भी आ जाता है कि स्वयं ही खोज ले। क्योंकि अब एक ही बिन्दु की बात रह जाती है। सब तैयारी पूरी होती है। जरा-सा संकल्प, और यात्रा शुरू हो जाती है। लेकिन यह पहुंचने में भी न मालूम कितने समर्पणों का हाथ है। जो व्यक्ति कभी-कभी अचानक समर्पण को उपलब्ध हो जाता है. उसके पीछे भी न मालम कितने संकल्पों दोनों का गहरे में जोड़ है। पद्धतियां अलग-अलग हैं, व्यक्ति अलग नहीं है। आज एक व्यक्ति मेरे पास आता है, कहता है कि सब समर्पण करता हूं। लेकिन सब समर्पण करना कितना बड़ा संकल्प है, इसका आपको पता है? इससे बड़ा कोई संकल्प क्या होगा? और यह इतना बड़ा संकल्प कर पाता है, इसका अर्थ हुआ है कि इसने बहुत छोटे-छोटे संकल्प साधे हैं, तभी इस योग्य हुआ है कि इस परम संकल्प को भी करने की तैयारी कर लेता है। 144 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340035
Book TitleMahavir Vani Lecture 35 Aap hi Hai Apne Param Mitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size70 MB
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