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________________ आप ही हैं अपने परम मित्र ही, अगर करोड़ में एक व्यक्ति संकल्प के मार्ग पर चल सकता है तो संकल्प की चर्चा खतरनाक है / क्योंकि वह जो करोड़ हैं, जो नहीं चल सकते, वे भी सुन लेंगे / और संकल्प के मार्ग का जो बड़ा खतरा यह है कि अहंकारियों को बड़ा प्रीतिकर लगता है कि ठीक है-न गुरु की जरूरत, न विधि की, न शास्त्र की--में काफी है। यह अहंकार को बहुत प्रीतिकर लगता है। तो करोड़ लोग अगर सुनेंगे, उनमें से एक चल सकता है। और बड़े मजे की बात यह है कि वह एक जो चल सकता है, शायद ही कृष्णमूर्ति को सुनने जायेगा / वह जायेगा ही क्यों? वह जो चल सकता है, वह जायेगा नहीं क्योंकि वह चल ही सकता है। और जो नहीं चल सकते हैं, वे ही जायेंगे। और सुनकर उन सबको यह भ्रम पैदा होगा कि हम अकेले ही चल सकते हैं / न किसी गुरु की जरूरत, न किसी शास्त्र की, न विधि की। वे केवल भटकेंगे और परेशान होंगे। क्योंकि अगर उन्हें गुरु की जरूरत न होती तो वे कृष्णमूर्ति के पास भी न आये होते। यह किसी की तलाश में उनका आना ही बताता है कि वे अपनी तलाश में अकेले नहीं जा सकते। लेकिन उनके मी तृप्ति मिलेगी क्योंकि गुरु बनाने में विनम्र होना जरूरी है। गुरु इनकार करने में कोई विनम्रता की आवश्यकता नहीं। विधि स्वीकार करने में कुछ करना पड़ेगा। कोई विधि नहीं है तो कुछ करने का सवाल ही समाप्त हो गया / काहिल, सुस्त, अहंकारी, कृष्णमूर्ति से प्रभावित हो जायेंगे। और वे बिलकुल गलत लोग हैं / उनसे तो यह बात की ही नहीं जानी चाहिए। और बड़ा मजा यह है कि कृष्णमूर्ति भी जहां पहुंचे हैं, बिना गुरु के नहीं पहुंचे हैं। इस सदी में किसी व्यक्ति को अधिकतम गुरु मिले हों तो वह कृष्णमूर्ति हैं / ऐनीबिसेंट जैसा गुरु, लीडबीटर जैसा गुरु खोजना बहुत मुश्किल है। लेकिन एक उपद्रव हुआ, और वह उपद्रव यह था कि कृष्णमूर्ति ने इन गुरुओं को नहीं खोजा था, इन गुरुओं ने कृष्णमूर्ति को खोजा, यही उपद्रव हो गया। और ये गुरु इतनी तीव्रता में थे, इतनी जल्दी में थे किन्हीं कारणों से-एक बहुत उपद्रवी सदी की शुरुआत हो रही थी और धर्म का कोई निशान भी न बचे, इसका भी डर था / और लीडबीटर और ऐनीबिसेन्ट और उनके साथी इस कोशिश में थे कि धर्म की जो शुभ्रतम ज्योति है, वह कहीं से प्रगट हो सके / तो वे किसी की तलाश में थे कि कोई व्यक्ति पकड़ लिया जाये, जो इस काम के लिए आधार बन जाये, मीडियम बन जाये। - कृष्णमूर्ति को उन्होंने चुना / कृष्णमूर्ति पर वर्षों मेहनत की; कृष्णमूर्ति को निर्मित किया, कृष्णमूर्ति को बनाया, खड़ा किया। कृष्णमूर्ति जो कुछ भी हैं, उसमें निन्यानबे प्रतिशत उनका दान है। लेकिन खतरा यह हुआ कि कृष्णमूर्ति ने स्वयं चुना नहीं था, वे चुने गये थे। और अगर हम अच्छा भी किसी को बनाने की चेष्टा करें, और यह उसकी मर्जी न रही हो, यह स्वेच्छा से न चुना गया हो, तो वह आज नहीं कल अच्छे बनानेवालों के भी विपरीत हो जायेगा। उन्होंने इतनी चेष्टा की कृष्णमूर्ति को निर्मित करने की कि यही चेष्टा कृष्णमूर्ति के मन में प्रतिक्रिया बन गयी / गुरु उनको बोझ की तरह मालूम पड़े, जिन्होंने जबर्दस्ती उन्हें बदलने की कोशिश की, ऐसा उन्हें लगा / वह प्रतिक्रिया बन गयी। वह आज भी उसका सखा संस्कार उनके ऊपर रह गया / वह आज भी उन्हीं के खिलाफ बोले जाते हैं। जब कृष्णमूर्ति गुरु के खिलाफ बोलते हैं तो आपको खयाल में भी नहीं आता होगा कि वह लीडबीटर के खिलाफ बोल रहे हैं, ऐनीबिसेंट के खिलाफ बोल रहे हैं। बहुत देर हो गयी उस बात को हुए / लेकिन वह बात जो गुरुओं ने उनके साथ की है, उनको बदलने की जो सतत अनुशासन देने की चेष्टा वह उनको गुलामी जैसी लगी, क्योंकि वह स्वेच्छा से चुनी नहीं गयी थी। उसके खिलाफ उनका मन बना रहा। __वे कहते चले गये हैं। उनको सुननेवाला वर्ग है, और वह वर्ग चालीस साल में कहीं नहीं पहुंच रहा है / वह सिर्फ शब्दों में भटकता रहता है। क्योंकि जो सुनने आता है, वह गुरु की तलाश में है। और जो वह सुनता है वह यह है कि गुरु की कोई जरूरत नहीं है / वह मान लेता है कि गुरु की जरूरत नहीं है और फिर भी कृष्णमूर्ति को सुनने आता चला जाता है। वर्षों तक फिर सुनने की कोई जरूरत नहीं है, अगर गुरु की कोई भी जरूरत नहीं / और यह भी बड़े मजे की बात है कि यह भी एक गुरु से सीखी हुई बात है कि गुरु की कोई भी 143 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340035
Book TitleMahavir Vani Lecture 35 Aap hi Hai Apne Param Mitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size70 MB
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