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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 तो महावीर कहते हैं, सदगुरु अनुभवी वृद्धों की सेवा / मूल् के संसर्ग से दूर रहना। मगर मूल् का संसर्ग बड़ा प्रीतिकर होता है / एक तो फायदा होता है कि मूों के बीच आप बुद्धिमान मालूम पड़ते हैं, इसलिए हर आदमी मूों की तलाश करता है। जब तक आपको दो-चार मूर्ख न मिल जायें, आप बुद्धिमान नहीं। और कोई उपाय भी तो नहीं बुद्धिमानी का, एक ही उपाय है कि दो चार मूर्ख इकट्ठे कर लो। इसलिए कोई पति अपने से बुद्धिमान पत्नी पसंद नहीं करता। अपने से ज्यादा पढ़ी लिखी हो, ज्यादा समझदार हो तो पसंद नहीं करता। क्योंकि फिर पति को मजा नहीं आयेगा बुद्धिमान होने का / मूर्ख पत्नी पसंद की जाती है / फिर निश्चित, मूर्ख जो कर सकती है, वह करती है। वह सहा जा सकता है, लेकिन अहंकार को रस आता है। हम सब ऐसी कोशिश करते हैं कि अपने से छोटे तल के लोग हमारे आसपास इकट्ठे हो जायें। उसमें रस आता है / मजा आता है। क्या मजा है उनके बीच? वह जो अकबर के सामने बीरबल ने किया था, एक लकीर खींच दी थी, छोटी लकीर के सामने एक बड़ी लकीर खींच दी थी। और अकबर ने कहा था कि इस लकीर को बिना छुए छोटा कर दो। तो बीरबल ने एक बड़ी लकीर नीचे खींच दी थी। दरबार में कोई भी उसे छोटा न कर सका, क्योंकि सभी ने कहा, बिना छुए कैसे छोटा कर दें? जब छोटा करना है तो छूना पड़ेगा। बीरबल ने कहा, छूने की कोई जरूरत नहीं। एक बड़ी लकीर खींच दी। लकीर छोटी हो गयी। हम सब होशियार हैं उतने, जितना बीरबल था। अपने को बुद्धिमान कैसे करना, सीधा रास्ता है। अपने से छोटी लकीरें आसपास इकट्ठी कर लो, आप बड़ी लकीर हो गये। महावीर कहते हैं, मूल् के संसर्ग से दूर रहना / क्योंकि वह संसर्ग मंहगा है। आपकी लकीर बड़ी भला दिखायी पड़े, लेकिन वह जो छोटी लकीरें इकट्ठी हो गयी हैं, वे धीरे-धीरे आपकी लकीर को और छोटा करती जायेंगी। क्योंकि जिनके साथ आप रहते हैं, आप धीरे-धीरे उन जैसे होने लगते हैं। साथ संक्रामक है। जिनके साथ आप रहते हैं, धीरे-धीरे वे आपको बदलने लगते हैं। उनसे बचना मुश्किल है। इतना मुश्किल है बचना कि साथ जिनके रहते हैं, उनसे तो बचना मुश्किल है ही, जिनके आप दुश्मन हो जाते हैं उन तक से बचना मुश्किल है, क्योंकि उनका भी संग-साथ हो जाता है भीतर। मुहम्मद अली जिन्ना गवर्नर जनरल हुए / तो उन्होंने, जैसा कि गवर्नर जनरल्स को करना चाहिए, एक अंग्रेज ए.डी.सी. रखा / वह अंग्रेज ए.डी.सी. जिन्ना को बहुत समझाया कि आपकी सुरक्षा का ठीक इंतजाम होना चाहिए, और आपके बंगले के चारों तरफ बड़ी दीवार होनी चाहिए। जिन्ना ने कहा कि मैं कोई तुम्हारे गवर्नर जनरल जैसा गवर्नर जनरल नहीं हूं। मैं एक लोकप्रिय नेता हूं। मुझे कौन मारनेवाला है? कोई जरूरत नहीं है बड़ी दीवार की और सुरक्षा की। मेरा कोई दुश्मन नहीं है। मैं पाकिस्तान का जन्मदाता हूं। तुम्हारे गवर्नर जनरल को दीवार की जरूरत थी, क्योंकि तुम हमारे दुश्मन थे, लेकिन मुझे कोई जरूरत नहीं है। ___ ए.डी.सी. बहुत समझाता रहा, लेकिन जिन्ना नहीं माना / जिस दिन गांधी की हत्या हुई और खबर पहुंची—जिन्ना अपने बगीचे में से ही खबर मिली, जिन्ना चिंतित हो गये, परेशान हो गये। उठकर उसने अपने ए.डी.सी. से कहा कि परी खबर का पता लगाओ, क्या हुआ है? और सीढ़ियां चढ़ते वक्त उसने लौटकर ए.डी.सी. से कहा, और ठीक है. वह जो दीवार के संबंध में तम कहते थे, उसका इन्तजाम कर लो। जिन्ना जीवनभर गांधी जो करें, उससे ही बंधा हुआ चलते रहे। चाहे हां करें, चाहे न / जिन्ना तब तक कोई उत्तर न देगा, जब तक गांधी क्या कहते हैं, यह पता न चल जाये। सारी पालिटिक्स इतनी थी जिन्ना की। वह गांधी की दुश्मनी से तय होती थी। यह बड़े मजे की बात है, जिंदगीभर भी जिन्ना गांधी की दुश्मनी से तय हुआ। और गांधी की मौत से भी जिन्ना तय हआ। उस दिन बैठा था 134 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340034
Book TitleMahavir Vani Lecture 34 Yah Nishreyas ka Marg Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size85 MB
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