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________________ यह निःश्रेयस का मार्ग है के बाद फिर जिन्ना कभी भी नहीं समझा कि मैं लोकप्रिय नेता हैं, सुरक्षा की कोई जरूरत नहीं / फिर दीवार खड़ी हो गयी और सारा इंतजाम कर लिया गया। यह बड़ी हैरानी की बात है कि गांधी और जिन्ना में इतनी दुश्मनी! लेकिन यह दुश्मनी भी एक दूसरे को तय करती है। मित्रता तो एक दूसरे को बनाती है, दुश्मनी तक बनाती होगी, दुश्मनी भी एक तरह की मित्रता है। जिनके साथ हम हैं, या जिनके विरोध में हम हैं, वे हमें निर्मित करते हैं। इसलिए महावीर कहते हैं, 'मों के संसर्ग से दर रहना. एकाग्र चित्त से सत शास्त्रों का अभ्यास करना। मूर्ख कौन है? क्या वे जो कुछ नहीं जानते? वे मूर्ख नहीं हैं, वे अज्ञानी हैं / उनको मूर्ख कहना उचित नहीं है। मूर्ख वे हैं, जो बहुत कुछ जानते हैं बिना कुछ जाने / उनसे बचना / ___ अब एक आदमी आपको बता रहा है कि ईश्वर है, और उसे कोई पता नहीं / उससे पहले पूछना कि तुझे पता है? उसे कुछ पता नहीं है। वह आपको बता रहा है कि ईश्वर है। एक आदमी बता रहा है, ईश्वर नहीं है। उससे पूछना, तूने पूरी-पूरी खोज कर ली है? ___ एक ईसाई पादरी अभी मुझे मिलने आये थे। उन्होंने कहा कि गाड इज इनडिफाइनेबल, ईश्वर अपरिभाष्य, अनंत, असीम, उसकी ई थाह नहीं ले सकता। मैंने उनसे पूछा, यह तुम थाह लेकर कह रहे हो, कि बिना थाह लिए ही कह रहे हो? वह जरा मुश्किल में पड़ गये / मैंने कहा कि अगर तुमने पूरी थाह ले ली है, तब तुम कह रहे हो कि अथाह है, तब तुम्हारा वचन बिलकुल गलत है / क्योंकि थाह तुम ले चुके / अगर तुम कहते हो कि मैं पूरी थाह नहीं ले पाया तो तुम इतना ही कहो कि मैं पूरी थाह नहीं ले पाया। पता नहीं, एक कदम आगे थाह हो! तुम अथाह कैसे कह रहे हो? और तुम कहते हो कि ईश्वर की कोई परिभाषा नहीं हो सकती, यह परिभाषा हो गयी। तुमने परिभाषा कर दी। तुमने ईश्वर का एक गण बता दिया कि उसकी कोई परिभाषा नहीं हो सकती। यह तुम क्या कह रहे हो? तो वह फौरन उन्होंने कहा कि बाइबिल में ऐसा लिखा है। मैंने कहा, बाइबिल में लिखा होगा। तुम्हें पता है? / __वहीं सारी बात अटकती है / दुनिया ज्ञानी मूल् से भरी है, लनेंड इडियट्स से / उनका कोई अंत ही नहीं है। पढ़े-लिखे गंवार, उनका कोई अंत ही नहीं है, उनसे दुनिया भरी है / और ध्यान रखना, गैर पढ़े-लिखे गंवार तो अपने आप कम होते जा रहे हैं, क्योंकि सब शिक्षित होते जा रहे हैं / अब गैर पढ़े-लिखे गंवार खोजना जरा मुश्किल मामला है / अब तो पढ़े-लिखे गंवार ही मिलेंगे / और एक खोजो, हजार मिलते हैं। महावीर कहते हैं, 'मूों के संसर्ग से दूर रहना।' जिनको कुछ पता नहीं है और जिनको यह वहम है कि पता है, वह तुम्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। 'एकाग्र चित्त से सत् शास्त्रों का अभ्यास करना।' शास्त्र, वह भी सत् हो / सत् का अर्थ इतना है- शास्त्र जिसका रस पांडित्य में न हो, सत्य में हो, जिसका रस विवाद में न हो, साधना में हो / शास्त्र, जो आपको कोई सिद्धांत, कोई संप्रदाय देने में उत्सुक न हो, जीवन रूपांतरित करने का विज्ञान देने में उत्सुक हो / तो ऐसे शास्त्र हैं जिनसे आपको सिद्धांत मिल सकते हैं, और ऐसे शास्त्र हैं जिनसे आपको जीवन-रूपांतरण की विधि मिल सकती है। सत शास्त्र वही है जिससे आपको विधि मिलती है। असत शास्त्र वही है जिससे आपको बकवास मिलती है। और बकवास लोग सीखकर बैठ जाते हैं। और जब बकवास बिलकुल मजबू व्रत हो जाती है तो वह भूल ही जाते हैं कि हम क्या कर रहे हैं। यह जो खोपड़ी में भर लिया, यह कोई आत्मा का रूपांतरण नहीं होनेवाला है। 135 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340034
Book TitleMahavir Vani Lecture 34 Yah Nishreyas ka Marg Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size85 MB
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