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________________ यह निःश्रेयस का मार्ग है सुनने से नहीं हो जायेगा। __ महावीर कहते हैं, जिससे सीखो, जिसके जीवन को अपने भीतर ले लेना हो, उसकी सेवा में डूब जाना पड़ेगा। इसलिए महावीर ने सेवा को बड़ा मूल्य दिया है / लेकिन यह सेवा, जिसको हम आज सर्विस कहते हैं, जिसको हम सेवा कहते हैं, उससे बहुत भिन्न है। अभी हम भी सेवा की बात करते हैं। रोटरी क्लब अपने सिम्बल में लिखता है, सर्विस, सेवा। क्रिश्चियन मिशनरी सेवा कर रही है, सर्वोदयवादी सेवा कर रहे हैं। गरीब की सेवा करो, दुखी की सेवा करो, यह सेवा सामाजिक घटना है। महावीर की सेवा एक साधना का अंग है। महावीर दुखी की सेवा के लिए नहीं कह रहे हैं, गरीब की सेवा के लिए नहीं कह रहे हैं। ___ महावीर कह रहे हैं, अनुभवी वृद्ध, सदगुरु की सेवा / इस सेवा में और रोटरी क्लब वाली सेवा में फ़र्क है। दूसरी सेवा केवल एक सामाजिक बात है। अच्छी है, कोई करे, हर्जा नहीं है। लेकिन महावीर की सेवा का अर्थ दूसरा है / वह सेवा एक साधन का अंग है। उसकी सेवा, जो तुमसे सत्य की दिशा में आगे जा चुका है / क्योंकि जब तुम उसकी सेवा के लिए झुकोगे-और सेवा में झुकना पड़ता है-जब तुम उसकी सेवा के लिए झुकोगे तो उसकी ऊंचाईयों से जो वर्षा हो रही है, वह तुममें प्रवेश कर जायेगी। जब तुम उसके चरणों में सिर रखोगे तो जो उसमें प्रवाहित हो रहा है ओज, वह तुम्हें भी छुएगा और तुम्हारे रोयें-रोयें को स्नान करा जायेगा। यह बडा सोचने जैसा मामला है। इस पर तो बहत चिंतन करने जैसी बात है। क्योंकि जब भी आप किसी की सेवा कर रहे हैं तो आपको झुकना पड़ता है। और जिसकी आप सेवा कर रहे हैं, वह आपमें प्रवाहित हो सकता है। यह खतरनाक भी है। क्योंकि अगर आप ऐसे आदमी की सेवा कर रहे हैं, जो आपसे चेतना की दृष्टि से नीचे है, तो आपको नुकसान होगा। अगर आपसे ऊंची चेतना के व्यक्ति से आपको लाभ होगा तो आपसे नीची चेतना के व्यक्ति से आपको नुकसान होगा। इसलिए हमने कहा है, वृद्ध जवानों की सेवा न करें / इसलिए हमने कहा है कि मां-बाप बेटे के पैर न छुएं / और बेटा छुए / इसके पीछे कुल एक ही कारण है कि श्रेष्ठतर प्रवाहित हो, कहीं निकृष्ट श्रेष्ठ के साथ संयुक्त न हो, उसे विकृत और अशुद्ध न करे। इसलिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात इस संदर्भ में आपको कहूं / यही कारण है कि भारत ने ईसाइयत जैसी सेवा की धारणा विकसित नहीं की, क्योंकि भारत को सेवा के संबंध में आंतरिक गहरे अनुभव हैं। इसलिए पश्चिम में बहुत लोग हैरान होते हैं कि भारत के धर्म कैसे हैं; गरीब की सेवा की कोई बात ही नहीं है, बीमार की सेवा की कोई बात नहीं है; रुग्ण की, कोढ़ी की सेवा की कोई बात नहीं है। यह सेवा के लिए, इनके बाबत कोई नहीं इनके पास मामला, ये धर्म कैसे हैं? गांधीजी बहुत प्रभावित थे ईसाइयत से, इसलिए उन्होंने कहा कि सेवा धर्म है। हमने कभी नहीं कहा इस मुल्क में, न महावीर ने, न बुद्ध ने; और ये सब सेवा को धर्म कहनेवाले लोग महावीर के ऐसे वचनों को उठाकर गलत अर्थ निकालते हैं। महावीर जब सेवा शब्द का उपयोग कर रहे हैं तो उनका प्रयोजन ही अलग है। हमने जानकर यह बात नहीं कही है। शूद्र को हमने नीचे रखा है, ब्राह्मण को ऊपर रखा है, इस आशा में कि शूद्र ब्राह्मण की सेवा करे, ब्राह्मण शूद्र की नहीं / बहुत अजीब लगता है, आज की चिंतन की हवा में बहुत अजीब लगता है कि यह क्या बात हुई? अगर ब्राह्मण सच्चा ब्राह्मण है, तो शूद्र की सेवा करे, क्योंकि सेवा से ही वह ब्राह्मण होगा। लेकिन हमारे लिए मूल्य शूद्र और ब्राह्मण का सामाजिक नहीं है, आत्मिक है। हम शूद्र उसको कहते हैं जो शरीर में जी रहा है, जिसका और कोई जीवन नहीं है। और ब्राह्मण हम उसको कहते हैं जो ब्रह्म में जी रहा है। जिसका और कोई जीवन नहीं है। तो जो ब्रह्म में जी रहा है, उसकी कोई भी सेवा करे तो उसे लाभ होगा। सेवा का अर्थ है- झुक जाना / और जो झुकता है, वह गड्ढा बन जाता हैं। और जो गड्ढा बन जाता है, उसमें वर्षा संगृहीत हो जाती 133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340034
Book TitleMahavir Vani Lecture 34 Yah Nishreyas ka Marg Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size85 MB
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