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________________ समय और मृत्यु का अंतर्बोध ये मन की स्थितियां हैं। देखते हैं कि मित्र चला आ रहा है, चित्त प्रसन्न हो जाता है। सुखी हो जाता है। लेकिन पास आकर पता चलता है कि धोखा हो गया, मित्र नहीं है, कोई और है, सुख तिरोहित हो गया / यह मन की स्थिति है, इसका मित्र से कोई संबंध नहीं था। क्योंकि मित्र तो वहां था ही नहीं। ___ रात निकले हैं, और दिखता है कि अंधेरे में कोई खड़ा है, छाती धड़कने लगी, भय हो गया। पास जाते हैं, देखते हैं, कोई भी नहीं है, लकड़ी का ढूंठ है, वृक्ष कटा हुआ है, निश्चिंत हो गये / छाती की धड़कन ठीक हो गयी। फिर गुनगुनाने लगे गीत और चलने लगे। यह मन की स्थिति है। ___ मन, सुख और दुख भोगता है। मन में सतयुग होता है, कलियुग होता है। मन में स्वर्ग होते हैं, नरक होते हैं। शरीर के भी जो पार उठ जाता है, मन के भी जो पार उठ जाता है / उस घड़ी को हम कहते हैं बुद्धत्व, जिनत्व। उस घड़ी को हमने कहा है, कृष्ण चेतना; उस घड़ी को हमने कहा है, क्राइस्ट हो जाना। जीसस का नाम तो जीसस है, क्राइस्ट नाम नहीं है। क्राइस्ट चित्त के पार होने का नाम है। बुद्ध का नाम तो गौतम सिद्धार्थ है, बुद्ध उनका नाम नहीं है। बुद्धत्व, उनकी चेतना का मन के पार चले जाना है। महावीर का नाम तो वर्धमान है, जिन उनका नाम नहीं है / जिन का अर्थ है, मन के पार चले जाना। क्राइस्ट के नाम में बड़ा मजा है। क्राइस्ट का नाम-जो इतिहास की गहरी खोज करते हैं, वे कहते हैं, क्राइस्ट कृष्ण का अपभ्रंश है। जीसस उनका नाम है, जीसस दी कृष्ण, जीसस जो कृष्ण हो गया। कृष्ण का रूप है क्राइस्ट / बंगाली में अब भी कृष्ण को कहते हैं, क्रिस्टो / बंगाली रूप है, क्रिस्टो / अगर कृष्ण का बंगाली रूप क्रिस्टो हो सकता है, तो हिब्रूया अरबी में क्राइस्ट हो सकता है, कोई अड़चन नहीं है। ___ यह जो, व्यक्ति जहां शरीर और मन, दोनों के पार हट जाता है, उन अवस्थाओं के नाम हैं / बुद्धत्व मनोस्थिति नहीं है, स्टेट आफ माइंड नहीं है। बुद्धत्व है स्टेट आफ नो माइंड , अ-मन की स्थिति है, जहां मन नहीं है / बुद्ध के पास कोई मन नहीं है, इसलिए हम उनको बुद्ध कहते हैं। महावीर के पास कोई मन नहीं है, इसलिए हम उनको जिन कहते हैं। __मन का क्या अर्थ होता है? मन का अर्थ होता है—विचारों का संग्रह, कर्मों का संग्रह, संस्कारों का संग्रह, अनुभवों का संग्रह / मन का अर्थ होता है-पास्ट, अतीत, जो बीत गया है उसका संग्रह / मन है जोड़ अतीत अनुभव का / जो हमने जाना, जीया, अनुभव किया उन सबका जोड़ हमारा मन है / मन हमारा संग्रह है समस्त अनुभवों का। हमारा मन बहुत बड़ा है। हम जानते नहीं। आप तो अपना मन उतना ही समझते हैं, जितना आप जानते हैं, वह तो कुछ भी नहीं है। उसके नीचे पर्त-पर्त गहरा मन है। फ्रायड ने खोज की है कि हमारा चेतन मन, उसके नीचे गहरा अचेतन मन है, अन्कान्शस है। फिर जुंग ने और खोज की कि उसके नीचे हमारा कलेक्टिव अन्कान्शस, सामूहिक अचेतन मन है / लेकिन ये खोजें अभी प्रारम्भ हैं / बुद्ध और महावीर ने जो खोज की है, अभी उस अतल में उतरने की मनोविज्ञान की सामर्थ्य नहीं है। बुद्ध और महावीर तो कहते हैं, कि यह जो हमारा मन है, इसके नीचे बड़ी पर्ते हैं, आपके सारे जन्मों की, जो पशुओं में हुए हैं, उनकी पर्ते हैं / जो पौधों में हुए उनकी पर्ते हैं। ___ अगर आप कभी एक पत्थर थे, तो उस पत्थर का अनुभव भी आपके मन की गहरी पर्त में दबा हुआ पड़ा है। कभी आप पौधे थे, तो उस पौधे का अनुभव और स्मृतियां भी आपके मन के पर्त में दबी पड़ी हैं। आप कभी पशु थे, वह भी दबा हुआ पड़ा है। इसलिए कई बार ऐसा होता है कि आपकी उन पों में से कोई आवाज आ जाती है तो आप आदमी नहीं रह जाते। जब आप क्रोध में होते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340028
Book TitleMahavir Vani Lecture 28 Samay aur Mrutyu ka Antarbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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