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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 सत्य है तब तो आपको खोज ही नहीं करनी चाहिए / आपने जो मान रखा है, अगर उसको ही पकड़कर कसौटी करनी है, तब तो आपकी सारी कसौटियां झूठी हो जायेंगी। जो आपने मान रखा है, उसको भी दूर रखिये; जो आपने सुना है उसको भी दूर रखिये / आप दोनों से अलग हो जाएं, किसी से अपने को जोड़िये मत / क्योंकि जिससे आप जोड़ रहे हैं, वहां पक्षपात हो जायेगा। दोनों को तराजू पर रखिये,आप दूर खड़े हो जाइए। आप निर्णायक रहिए, पक्षपाती नहीं। __ हर बार, जब नयी बात सुनी जाये तो पुरानी को अपनी मानकर, नयी को दूसरे की मानकर अगर तौलिएगा, तो आप कभी निष्पक्ष चिंतन नहीं कर सकते। अपनी पुरानी को भी दूर रखिए, इस नयी को भी दूर रखिए, दोनों परायी हैं। सिर्फ फर्क इतना है कि एक बहुत पहले सुनी थी, एक अब सुनी है। समय भर का फासला है। कोई बात बीस साल पहले सुनी थी, कोई आज सुनी है। बीस साल पुरानी जो थी, वह आपकी नहीं हो गयी है, वह भी परायी है। उसे भी दूर रखिए, इसे भी दूर रखिए। और स्वयं को पार, अलग रखिए, और तब दोनों को सोचिए। इस सोचने में पक्ष मत बनाइए, निष्पक्ष दृष्टि से देखिए तो निर्णय बहुत आसान होगा। और बड़ा मजा यह है कि इतना निष्पक्ष जो चित्त हो उसे सत्य दिखायी पड़ने लगता है, सोचना नहीं पड़ता। इसलिए हमने निरंतर इस मुल्क में कहा है कि सत्य सोच विचार से उपलब्ध नहीं होता, दर्शन से उपलब्ध होता है। यह निष्पक्ष चित्त दर्शन की स्थिति है, देखने में आप कुशल हो गये। अब आपको दिखायी पड़ेगा, कि क्या है सत्य और क्या है असत्य / अब आपकी आंख खुल गयी। यह आंख देख लेगी कि क्या है सत्य, क्या है असत्य। लेकिन अगर पक्षपात तय है, आप हिंदू हैं, मुसलमान हैं, जैन हैं। बंधे हैं अपने पक्षपात से, तो फिर आप कुछ भी न देख पायेंगे। वह पक्षपात आपकी आंख को बंद रखेगा। जो पक्षपात से देखता है, वह अंधा है। जो निष्पक्ष होकर देखता है, वह आंखवाला है। सुनें, फिर आंखवाले का व्यवहार करें। कलियुग, सतयुग मनोस्थितियां हैं, बुद्धत्व मनोस्थिति नहीं है। स्वर्ग-नरक मनोस्थितियां हैं, बुद्धत्व मनोस्थिति नहीं है, या जिनत्व मनोस्थिति नहीं है। इसे थोड़ा समझ लें। हमारे भीतर तीन तल हैं। एक हमारे शरीर का तल है / सुविधाएं असुविधाएं, कष्ट-अकष्ट शरीर की घटनाएं हैं। इसलिए अगर आपका आपरेशन करना है तो आपको एक इंजेक्शन लगा देते हैं। वह अंग शून्य हो जाता है। फिर आपरेशन हो सकता है, आपको कोई तकलीफ नहीं होती है / पैर कट रहा है, आपको कोई तकलीफ नहीं होती। क्योंकि पैर कट रहा है, इसकी खबर मन को होनी चाहिए। जब खबर होगी, तभी तकलीफ होगी। मन की तकलीफ नहीं है, यह तकलीफ पैर की है / तो पैर और मन के बीच में जिनसे जोड़ है, जिन स्नायुओं से, उनको बेहोश कर दिया तो आप तक तकलीफ पहुंचती नहीं। तकलीफ पहुंचनी चाहिए तो ही...! ___ कष्ट, असुविधाएं शरीर की घटनाएं हैं। इसलिए बड़े मजे की बात है, आपके पैर में तकलीफ हो रही है, इंजेक्शन लगा दिया जाये, आपको पता नहीं चलता। आप मजे से लेटे गप-शप करते रहते हैं। इससे उल्टा भी हो सकता है-पैर में तकलीफ नहीं हो रही, और आपके स्नायुओं को कंपित कर दिया जाये, जिनसे तकलीफ की खबर मिलती, तो आपको तकलीफ होगी। आप छाती पीटकर चिल्लाएंगे कि मैं मरा जा रहा हूं; और कहीं कोई तकलीफ नहीं हो रही। ___ तकलीफ से आपको जानने से रोका जा सकता है। तकलीफ की झूठी खबर मन को दी जा सकती है। मन के पास कोई उपाय नहीं है जांचने का कि सही क्या है, गलत क्या है। शरीर जो खबर दे देता है वह मन मान लेता है। ये शरीर की स्थितियां हैं, आपको भूख लगी है, प्यास लगी है, ये सब शरीर की स्थितियां हैं। इसके पीछे मन की स्थितियां हैं। आपको सुख हो रहा है,आपको दुख हो रहा है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340028
Book TitleMahavir Vani Lecture 28 Samay aur Mrutyu ka Antarbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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