SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समय और मृत्यु का अंतर्बोध से नहीं, कांशसनेस से, चैतन्य से निकलेगा। ___ महावीर कोई बंधा हुआ उत्तर तैयार नहीं रखते हैं कि आप पूछेगे, वह दे देंगे। उनके पास रेडीमेड कुछ भी नहीं है। पंडित के पास सब रेडीमेड है। आप पूछेगे, वह वही उत्तर देगा जो तैयार है। इसलिए एक बड़ी कठिनाई खड़ी होती है। महावीर का आज का उत्तर जरूरी नहीं कि कल भी हो, परसों भी हो / पंडित का आज भी वही होगा, कल भी वही होगा, परसों भी वही होगा। क्योंकि पंडित के पास वस्तुतः कोई उत्तर नहीं है, केवल एक जानकारी है। महावीर का उत्तर रोज बदल जायेगा, रोज बदल सकता है, प्रतिपल बदल सकता है। क्योंकि वह कोई जानकारी नहीं है। ___ महावीर की चेतना जो प्रतिध्वनि करेगी, इस प्रतिध्वनि में अंतर पड़ेगा, क्योंकि पूछनेवाला रोज बदल जायेगा / और पूछनेवाले पर निर्भर करेगा / इसे ऐसा समझें-एक फोटोग्राफ है , तो फोटोग्राफ आज भी वही शक्ल बतायेगा, कल भी वही शक्ल बतायेगा, परसों भी वही शक्ल बतायेगा। किसी को दे दें देखने के लिए, इससे फर्क नहीं पड़ेगा। एक दर्पण है, दर्पण वही शक्ल नहीं बतायेगा। जो देखेगा, उसकी ही शक्ल बतायेगा। रोज बदल जायेगी शक्ल / पांडित्य फोटोग्राफ है / सब पक्का बंधा हुआ है। हम उसी आदमी को बड़ा पंडित कहते हैं जिसका फोटोग्राफ बिलकुल साफ है, एक-एक रेखा-रेखा साफ दिखायी पड़ती हो। ___महावीर और बुद्ध जैसे लोग तो दर्पण की भांति हैं। आपकी शक्ल दिखायी पड़ेगी। इसलिए जब प्रश्न पूछनेवाला बदल जायेगा तो उत्तर बदल जायेगा / पंडित का उत्तर कभी न बदलेगा। आप सोते से उठाकर पूछ लो, कुछ भी करो, उसका उत्तर नहीं बदलेगा / उसका उत्तर वही रहेगा। __ इससे एक बड़ी कठिनाई पैदा होती है। महावीर और बुद्ध के वचनों में बड़ी असंगतियां दिखायी पड़ती हैं, दिखायी पड़ेंगी। पंडित ही संगत हो सकता है / आशुप्रज्ञ संगत नहीं हो सकता / क्योंकि प्रतिपल परिस्थिति बदल जाती है, पूछनेवाला बदल जाता है, संदर्भ बदल जाता है, उत्तर बदल जाता है, दर्पण का प्रतिबिम्ब बदल जाता है। आप पर निर्भर करेगा कि महावीर का उत्तर क्या होगा। पूछनेवाले पर निर्भर करेगा कि उत्तर क्या होगा। इसलिए महावीर कहते हैं, आशप्रज्ञ पण्डित, जिसकी प्रज्ञा प्रतिपल तैयार है उत्तर देने को / प्रज्ञा, जिसका ज्ञान, प्रतिपल तैयार है उत्तर देने को। 'आशुप्रज्ञ पंडित पुरुष को मोह-निद्रा में सोये हुए संसारी मनुष्यों के बीच रहकर भी सब तरह से जागरूक रहना चाहिए।' महावीर कहते हैं कि जिसको भी ऐसी प्रज्ञा में थिर रहना है, ऐसे ज्ञान में थिर रहना है, ऐसे ज्ञान में गति करते जाना है, उसे संसारी सोये हुए मनुष्यों के बीच रहकर भी सब तरह से जागरूक रहना चाहिए / रहना तो पड़ेगा ही सोये हुए लोगों के बीच / क्योंकि वे ही हैं, और तो कोई है भी नहीं / भागने से कोई सार भी नहीं है। कहीं भी भाग जाओ, सोये हुए लोगों के बीच ही रहना पड़ेगा / यह जरा समझ लेने जैसा है। अकसर लोग सोचते हैं कि शहर छोडकर गांव चला जाऊं। गांव में भी सोये हए लोग ही हैं। कोई सोचता है. गांव छोड़कर जंगल चला जाये / लेकिन आपको कभी खयाल न आया होगा कि जंगल के पौधे मनुष्य से ज्यादा सोये हुए हैं, इसलिए तो पौधे हैं। और जंगल के पशु-पक्षी मनुष्य से ज्यादा सोये हुए हैं, इसलिए तो पशु-पक्षी हैं / ये मनुष्य भी कभी पशु-पक्षी थे और पौधे थे। ये थोड़े-थोड़े जागकर मनुष्य तक आ गए हैं। अगर एक आदमी मनुष्यों को छोड़कर जंगल जा रहा है तो वह और भी गहन, सोयी हुई चेतनाओं के बीच जा रहा है। वहां उसे शांति मालूम पड़ सकती है। उसका कुल कारण इतना है कि वह इन सोये हुए प्राणियों की भाषा नहीं समझ रहा है। 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340028
Book TitleMahavir Vani Lecture 28 Samay aur Mrutyu ka Antarbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy