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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 इसे थोड़ा समझ लें। हम उस व्यक्ति को आशु कवि कहते हैं जो कविता बनाकर नहीं आया है, जिसकी कविता तत्क्षण बनेगी। जो कविता पहले बनायेगा नहीं, फिर गायेगा नहीं; जो गायेगा और गाने में ही कविता निर्मित होगी। उसको कहते हैं, आशु कवि / उसका गाना और बनाना साथ-साथ है। वह पहले बनाता और फिर गाता, ऐसा नहीं। वह गाता है, और कविता बनती चली जाती है। आश कवि का अर्थ है. कविता उसके लिए कोई रचना नहीं है, उसका स्वभाव है। वह बोलेगा, तो कविता है। उसके बोलने में ही काव्य होगा / काव्य को उसे बाहर से लाकर आरोपित नहीं करना होता / वह उससे वैसे ही निकलता है, जैसे वृक्षों में पत्ते निकलते हैं। जैसे झरना बहता है वैसे उसकी कविता बहती है, निष्प्रयोजन है, निष्चेष्टित है। उसके लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। __जितना छोटा कवि हो उतना ज्यादा प्रयास करना पड़ता है। जितना बड़ा कवि हो उतना कम प्रयास करना पड़ता है। आशु कवि हो तो प्रयास होता ही नहीं, कविता बहती है। तब कविता एक निर्माण नहीं है, कोई आयोजना, कोई व्यवस्था नहीं है। तब कविता वैसे ही है जैसे श्वास का चलना है। ऐसे व्यक्ति को हम कहते हैं, आशु कवि / आशुप्रज्ञ उसे कहते हैं, जिसका ज्ञान स्मृति नहीं है। आप उससे पूछते हैं। आप किसी से कुछ पूछते हैं तो दो तरह के उत्तर सम्भव हैं। एक सवाल आप मुझसे पूछे तो दो तरह के उत्तर सम्भव हैं / एक-आप सवाल पूछते हैं, मैं तत्काल अपनी स्मृति के संग्रह में जाऊं और उत्तर खोज लाऊं। आप मुझसे कुछ पूछे, मैं तत्काल खोजूं अपने अतीत में, अपने मस्तिष्क में, अपनी स्मृति में, अपने कोश में, अपने संग्रह में उत्तर-उत्तर खींचकर स्मृति से ले आऊ, उत्तर दे दूं। यह एक पंडित का उत्तर है। __ आप मुझसे प्रश्न पूछे, मैं अपने भीतर चला जाऊं, स्मृति में नहीं। आप मुझसे उत्तर पूछे, मैं उत्तर के सामने अपनी चेतना को खड़ा कर दूं, स्मृति को नहीं। आप उत्तर पूछे, मैं दर्पण की तरह आपके उत्तर के सामने खड़ा हो जाऊं, और मेरी यह चेतना प्रतिध्वनि दे, आपके प्रश्न का उत्तर दे। यह उत्तर स्मृति से न आये, इस क्षण की मेरी चेतना से आये, तो आशुप्रज्ञ / आशुप्रज्ञ का अर्थ है, अभी जिसकी चेतना से उत्तर आयेगा, ताजा, सद्यःस्नात, अभी-अभी नहाया हुआ, बासा नहीं। हमारे सब उत्तर बासे होते हैं / बासे उत्तर में समय लगता है, पता चले या न चले / आशुप्रज्ञ में समय नहीं लगता। आपसे कोई प्रश्न पूछे, समय लगता है। अगर ऐसा प्रश्न पूछे कि आपका नाम क्या है तो आपको लगता है. कोई समय नहीं लगता। कह देते हैं. राम। लेकिन इसमें भी समय लगता है। असल में आदत हो गयी है। आपको पता है कि आपका नाम राम है, इसलिए समय लगता मालूम नहीं पड़ता, लेकिन इसमें भी समय जाता है। लेकिन कोई आपसे पूछे कि आपके पड़ोसी का नाम क्या है? तो आप कहते हैं, जबान पर रखा है, लेकिन याद नहीं आ रहा है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है, स्मृति में है, लेकिन हम स्मृति तक पहुंच नहीं पा रहे, बीच में कुछ दूसरी चीजें अड़ गयी हैं, कुछ दूसरी स्मृतियां अड़ गयी हैं; इसलिए हम ठीक पहुंच नहीं पा रहे / मालूम भी है, लेकिन पकड़ नहीं पा रहे स्मृति में। आपको जो याद है, उसको आप तत्काल उत्तर दे देते हैं। समय बीत जाता है तो भूल जाता है, फिर आप तत्काल उत्तर नहीं दे पाते / लेकिन अगर आपको थोड़ा समय मिले, सुविधा मिले, तो आप खोज ले सकते हैं उत्तर। स्मति से आया हुआ उत्तर पाण्डित्य का उत्तर है। आपसे किसी ने पछा. ईश्वर है? तो आप जो भी उत्तर देंगे वह पाण्डित्य का हो जायेगा / लेकिन कोई महावीर से पछे. तो वह उत्तर पाण्डित्य का नहीं होगा, वह महावीर के जानने से निकलेगा। वह महावीर की जानकारी से नहीं निकलेगा-जानने से निकलेगा। मेमोरी 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340028
Book TitleMahavir Vani Lecture 28 Samay aur Mrutyu ka Antarbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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