________________ महावीर-वाणी भाग : 2 लेकिन सारा जंगल सोया हआ है। ये सोये हए वक्ष,सोये हए मनुष्य ही हैं। जो कभी मनुष्य हो जायेंगे। ये जागे हए मनुष्य जो दिखायी पड़ रहे हैं, ये थोड़े से आगे बढ़ गये वृक्ष ही हैं जो कभी वृक्ष थे / पीछे लौटने में चूंकि भाषा का पता नहीं चलता, इसलिए आदमी सोचता है, जंगल में ठीक रहेगा। न कोई रहेगा आदमी, न कोई होगा उपद्रव / उपद्रव न होने का कुल कारण इतना है कि आदमी की भाषा जल्दी चोट करती है, और ज्यादा होश रखना पड़ता है, नहीं तो चोट से बचा नहीं जा सकता। आदमी गाली देगा तो क्रोध जल्दी आ जायेगा। पत्थर की चोट पैर में लगेगी तो उतनी जल्दी क्रोध नहीं आयेगा क्योंकि हम सोचते हैं, पत्थर है। छोटे बच्चों को आ जाता है। क्योंकि अभी उनको पता नहीं है कि पत्थर और आदमी में फर्क करना है। वह पत्थर को भी गाली देंगे, डंडा उठाकर पत्थर को भी मारेंगे। कभी-कभी आप भी बचकाने होते हैं, तब वैसा कर लेते हैं। कलम ठीक से नहीं चलती तो गाली देकर फर्श पर पटक देते हैं। लेकिन चाहे कहीं भी चले जाओ, महावीर कहते हैं, संसार में तो रहना ही पड़ेगा। संसार का मतलब ही है, सोयी हुई चेतनाओं की भीड़। यह भीड़ चाहे बदल लो, चाहे वृक्षों की हो, चाहे पशुओं की हो, चाहे मनुष्यों की हो, यह भीड़ तो मौजूद है / यह स्थिति है, इससे बचा नहीं जा सकता। संसार अनिवार्य है, उससे तब तक बचा नहीं जा सकता, जब तक हम पूरी तरह जाग न जायें। तो आशुप्रज्ञ पंडित को भी, जो इस जागने की चेष्टा में सतत संलग्न है, सोये हुए लोगों के बीच रहना पड़ेगा। तो उसे सदा जागरूक रहना चाहिए / क्यों? __ क्योंकि नींद भी संक्रामक है, इनफैक्शस है। यहां इतने लोग बैठे हैं, हम सब संक्रामक रूप से जीते हैं। अभी एक आदमी खांस दे, तभी पता चलेगा, दस बीस लोग खांसने लगेंगे। क्या हो गया? अभी तक ये चुपचाप बैठे थे, इनके गले को क्या हो गया? अभी तक कोई गड़बड़ न थी। एक आदमी ने खांसना शुरू किया, दस बीस लोग खांसना शुरू कर देंगे। संक्रामक है। हम अनुकरण से जीते हैं। एक आदमी पेशाब करने चला जाये तो कई लोगों को खयाल हो जायेगा कि पेशाब करने जाना है। संक्रामक है। हम एक दूसरे के हिसाब से जी रहे हैं। हिटलर अपनी सभाओं में अपने दस पांच आदमियों को दस जगह बिठा रखता था। ठीक वक्त पर दस आदमी ताली बजाते, वह पूरा हाल तालियों से गूंज उठता था। समझ गया था कि ताली संक्रामक है। दस आदमी अपने हैं, वे ताली बजा देते हैं, फिर बाकी दस हजार लोग भी ताली बजा देते हैं। ये दस हजार लोगों को क्या हो गया? इनकी ताली को क्या हो गया? ___ हमारा मन आसपास से एकदम प्रभावित होता रहता है। बीमारियां ही नहीं पकड़ती हमको, फ्लू ही नहीं पकड़ता हमको, एक दूसरे से क्रोध भी पकड़ता है, मोह भी पकड़ता है, लोभ भी पकड़ता है, कामवासना भी पकड़ती है। शरीर ही नहीं पकड़ता जीवाणुओं को, मन भी पकड़ता है। ___ इसलिए महावीर कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को सोये हुए लोगों के बीच जागरूक रहना चाहिए, क्योंकि वे चारों तरफ गहन निद्रा में सो रहे हैं। उनकी निद्रा की लहरें तुम्हें छुयेंगी / वे चारों तरफ से तुम्हारे भीतर आयेंगी। तुम अकेले ही अपनी नींद के लिए जिम्मेवार नहीं हो, तुम एक नींद के सागर में हो जहां चारों तरफ से नींद तुम्हें छयेगी। अगर तुमने बहत चेष्टा न की तो वह नींद तुम्हें पकड़ लेगी। वह नींद तुम्हें डुबा देगी। कोई तुम्हें डुबाने की उसकी आकांक्षा नहीं है, यह कोई सचेतन प्रयास नहीं है, यह केवल स्थिति है। __कभी आपने खयाल किया है, अगर दस लोग बैठे हैं और एक आदमी जम्हाई लेने लगे फौरन दूसरे कुछ लोग जम्हाई लेना शुरू कर देंगे। एक आदमी सो जाये दूसरे लोगों को नींद पकड़ने लगेगी। __ हम समूह का एक अंग हैं जब तक हम पूरे नहीं जाग गये। जब तक कोई व्यक्ति पूरा नहीं जागा, तब तक वह व्यक्ति नहीं है, भीड़ 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org