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________________ संग्रह : अंदर के लोभ की झलक इंद्रधनुष जैसा है सुख। पास जायें, खो जाता है; दूर रहें, बहुत रंगीन / महावीर कहते हैं इस मूर्छा को मैं परिग्रह कहता हूं। यह जो वस्तुओं में सुख रखने की और खोजने की चेष्टा है, इसे मूर्छा कहता हूं। पहले हम वस्तुओं में अपनी आत्मा को रख देते हैं, फिर उसको खोजने निकल जाते हैं। फिर जब वस्तु मिल जाती है तो आत्मा को पाते नहीं, ठीकरा वस्तु हाथ में रह जाती है। तब छाती पीटकर रोते हैं। थोड़ी बहुत देर रोना होता है, फिर तत्काल हम किसी रख लेते हैं। वस्तुओं का कोई अंत नहीं, इसलिए जीवन की यात्रा का भी कोई अंत नहीं। चलती जाती है यात्रा। आज यहां, कल वहां। पुरानी कहानियों में बच्चों की, आपने पढ़ा होगा कि सम्राट अपनी आत्मा को पक्षियों में छिपा देते। कोई तोते में अपनी आत्मा को रख देता है। जब तक तोता न मारा जाये, तब तक वह सम्राट नहीं मरता। ___ यह सम्राट रखते हों या न रखते हों, लेकिन यह कहानी बड़ी प्रतीकात्मक है। हम सब भी अपनी आत्मा को वस्तुओं में रख देते हैं, और जब तक हम उन वस्तुओं को पा न लें, तब तक जिंदगी बड़े मजे से चलती है। उन वस्तुओं को पाने से ही आत्मा उन वस्तुओं से खिसक जाती है। नष्ट हो जाती है। तब जिंदगी मुश्किल में पड़ जाती है। __यह जो मुसीबत है, यह एक आत्म-सम्मोहन, आटो-हिप्नोसिस का परिणाम है। इसको महावीर ने मूर्छा कहा है। कैसे इसे तोड़ें? वस्तुओं से है कैसे मुक्त हों? इसका यह मतलब नहीं कि महावीर को प्यास लगेगी तो पानी नहीं पीयेंगे। लेकिन महावीर पानी के प्रति मर्छित नहीं हैं। वह ऐसा नहीं सोचते कि पानी पीने से प्यास मिट जायेगी। वह जानते हैं, प्यास तो फिर दो घडी बाद पैदा हो जायेगी। पानी प्यास को थोड़ी देर पोस्टपोन करता है। स्थगित करता है। वे नहीं सोचते कि खाना खाने से पेट भर जायेगा। खाना खाने से पेट का जो गैर भरापन है, वह थोड़ी देर के लिए सरक जायेगा। इसका यह मतलब नहीं है कि वे पेट को खाली रखते, या पानी नहीं पीते। वह पानी भी पीते हैं, पेट को जब जरूरत होती है भोजन भी देते हैं, लेकिन उनका कोई सम्मोहन नहीं है कि पानी स्वर्ग हो जायेगा, ऐसा उनका सम्मोहन नहीं। सब ऐसी हालत में हैं, जैसे एक आदमी रेगिस्तान में पड़ा हो, प्यासा तड़प रहा हो। उस वक्त उसको ऐसा लगता है, अगर पानी मिल जाये, तो सब मिल गया। हमारी हालत ऐसी है कि हम सोच रहे हैं कि अगर पानी मिल जाये तो सब मिल गया। ___ एक मित्र एक राज्य के मिनिस्टर हैं। वे मेरे पास आते थे। वे मुझसे आकर बोले, मुझे सिर्फ नींद आ जाये तो मुझे स्वर्ग मिल गया। और कुछ नहीं चाहिए। मैं आपके पास न आत्मा जानने आया, न परमात्मा की खोज के लिए आया, में तो सिर्फ एक ही आशा कि मझे नींद आ जाये. तो मझे सब मिल गया। मैंने उन्हें कछ श्वास के ध्यान के प्रयोग बताये और मैंने कहा वह तो मिल ही जायेगा, कोई तकलीफ नहीं है। उन्होंने कहा, बस, यह अगर मुझे मिल जाये तो मुझे और कुछ चाहिए भी नहीं। यह रेगिस्तान में पड़े हुए आदमी की हालत है कि पानी मिल जाये तो सब मिल जाये, और आप सबको पानी मिला हुआ है। और कुछ नहीं मिलता पानी मिलने से। लेकिन रेगिस्तान में ऐसा लगता है कि पानी मिल जाये तो सब मिल जाये। रेगिस्तान पानी के प्रति इतना बड़ा सम्मोहन पैदा कर देता है कि वह पड़ा हुआ आदमी सोच भी नहीं सकता कि पानी के मिलने के बाद कुछ और भी दुनिया में पाने को चीज रह जायेगी। ___ उन मित्र ने कुछ दिन ध्यान का प्रयोग किया, उनको नींद आ गयी। महीने भर बाद वे आये, और बोले, नींद तो आने लगी और कुछ भी नहीं हुआ। मैंने, जब वह पहले आये थे तो टेप कर लिया था. जो-जो वह कह गये थे। मैंने टेप लगवाया और मैंने कहा, सुनिए। आप 453 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340024
Book TitleMahavir Vani Lecture 24 Sangraha Andar ke Lobh ki Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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