________________ ब्रह्मचर्य : कामवासना से मुक्ति दुनिया में अधिकतम प्रतिभाएं संघर्षशील घरों से आती हैं, दुख से आती हैं। दुख निखारता है, उत्तेजित करता है, चुनौती देता है। देवता सो जायेंगे, क्योंकि वहां सुख ही सुख है-कल्पवृक्ष, सुख, अप्सराएं, सब यौवन, सब सुगंध। इंद्रियों की जो वासना है, वह परिपूर्ण रूप से तृप्त हो, ऐसी स्वर्ग की हमारी धारणा है। इंद्रियों की कोई वासना तृप्त न हो, दुख ही दुख भर जाये, ऐसी हमारी नरक की धारणा है। लेकिन महावीर अगर यह कहते हैं कि दुख में आदमी जागता है इसलिए मनुष्य देवता के भी पार जा सकता है तब तो नरक और भी जाग जाना चाहिए। क्योंकि नरक में और भी सघन दुख है। ___ लेकिन एक बड़ी गहरी बात है। अगर पूरा-पूरा सुख हो, तो भी आदमी नहीं जाग पाता। अगर एकदम दुख ही दुख हो, तो भी आदमी नहीं जाग पाता। क्योंकि दुख ही दुख हो तो भी चेतना दब जाती है। जहां सुख और दुख दोनों के अनुभव होते हैं वहां चेतना सदा जगी रहती है। सुख ही सुख हो तो भी सो जाता है मन , दुख ही दुख हो तो भी सो जाता है मन / संघर्ष तो पैदा होता है जहां दोनों हों, तुलना हो, चुनाव हो। एक बड़े मजे की बात है, मनुष्य के इतिहास से भी साबित होती है। जब तक कोई समाज बिलकुल ही गरीब रहता है तब तक बगावत नहीं करता। हजारों साल से दुनिया गरीब है, लेकिन बगावत नहीं होती है। शायद हम सोचते होंगे कि इसलिए बगावत नहीं होती थी कि लोग बड़े सुखी थे। नहीं, सुख का कोई अनुभव ही नहीं था। दुख शाश्वत था। बगावत नहीं होती थी। अब बगावत सारी दुनिया में हो रही है। और बगावत वहीं होती है जहां आदमी को दोनों अनभव शरू हो जाते हैं—सख दुख के भी। तब वह और सुख पाना चाहता है, तब वह पूरा सुख पाना चाहता है, तब वह बगावत करता है। __दुखी आदमी, बिलकुल दुखी आदमी बगावत नहीं करता। ऐसा दुखी आदमी बगावत करता है जिसे सुख की आशा मालूम पड़ने लगती है। नहीं तो बगावत नहीं होती। दुनिया में जितने बगावती स्वर पैदा हुए हैं, वे सब मध्य वर्ग से आते हैं-चाहे मार्क्स हो, और चाहे एंजिल्स हो और चाहे लेनिन हो और चाहे माओ हो, चाहे स्टैलिन हो, ये सब मध्यवर्गीय बेटे हैं। मध्य वर्ग का मतलब है जो दुख भी जानता है और सुख भी जानता है। जिसकी एक टांग गरीबी में उलझी है और एक हाथ अमीरी तक पहंच गया है। मध्य वर्ग का अर्थ है, जो दोनों के बीच में अटका है। जो जानता है कि एक धक्का लगे तो मैं अभी गरीब हो जाऊं, और अगर एक मौका लग जाये तो अभी मैं अमीर हो जाऊं। जो बीच में है। यह बीच का आदमी बगावत का खयाल देता है दुनिया को। क्योंकि यह खयाल देता है, सुख मिल सकता है। सुख पाया जा सकता है। इसके हाथ के भीतर मालूम पड़ता है। मिल न गया हो लेकिन संभावना निकट मालम पड़ती है। थोडा और यह लंबा हो जाये तो सख मिल जाये। और दख भी इससे छूटता मालूम पड़ता है। अगर थोड़ी हिम्मत जुटा ले तो दुख छूट जाये। करीब-करीब मनुष्य स्वर्ग और नरक के बीच में मध्यवर्गीय है। देवता हैं ऊपर, नारकीय हैं नीचे, बीच में है मनुष्य। मनुष्य का एक पैर तो नरक में खड़ा ही रहता है पूरे वक्त दुख में, और एक हाथ सुख को छूता रहता है। इसलिए महावीर कहते हैं, मनुष्य संक्रमण, ट्रांजिटरी अवस्था है। और जहां संक्रमण है वहां क्रांति हो सकती है। जहां संक्रमण है वहां बदलाहट हो सकती है। नीचे है नर्क, ऊपर है स्वर्ग, बीच में है मनुष्य। मनुष्य चाहे तो नर्क में गिरे, चाहे तो स्वर्ग में और चाहे तो दोनों से छूट जाये। नरक का पैर भी बाहर खींच ले, स्वर्ग का हाथ भी नीचे खींच ले। यह जो बीच में आदमी खड़ा हो जाये-महावीर कहते हैं, इस आदमी के देवता भी चरण में गिर जाते हैं। लेकिन कब आप नरक का पैर खींच पायेंगे? महावीर कहते हैं, जब तक तुम्हारा एक हाथ स्वर्ग पकड़ता है, तब तक तुम्हारा एक पैर नरक में रहेगा। वह स्वर्ग पकड़ने की चेष्टा से ही नरक पैदा हो रहा है। सख पाने की आकांक्षा दख बन रही है। स्वर्ग की अभीप्सा नरक का कारण बन रही है। जब तुम एक 437 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org