________________ 279 || 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी | 27 है। सौन्दर्य के लिए वमन, वस्तिकर्म, विरेचन अनाचार हैं, रुग्णावस्था में यह अनाचार नहीं है। इस प्रकार संयम में बाधा पहुंचाने वाले अनाचार से विरत रहकर काय-गुप्ति का सम्यक् प्रकार से पालन किया जाता है। सन्दर्भ:1. दशवैकालिक सूत्र, 9.4.3 2. दसवेआलियं, जैन विश्वभारती, लाडनूं, 1973, 2.4, पृ.28 धम्मपद 1.1 5. जिनदास चूर्णि में 'आसव-प्रतिस्रोत' का अर्थ इन्द्रिय-जय किया गया है- द्रष्टव्य, दसवेआलियं, पृ. 5.25 6. मनुस्मृति, द्वितीय अध्याय, श्लोक 3 7. द्रष्टव्य- दसवेआलियं, पृ. 23 8. दशवैकालिक सूत्र, 2.1 9. दव्व कामा य भाव कामा य / / - दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 161 10. सदद् रस रूव गंधा फासा, उदयं करा य जे दव्वा दुविहा य भावकामा, इच्छा कामा मयण कामा।।- दशवैकालिक नियुक्ति, 162 11. दसवेआलियं, जैन विश्व भारती, लाडनूं, 1973, पृ.23 12. दशवैकालिक सूत्र, 2.5 13. तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कड्डयं निठुरं फरुसं अण्हयकरि छेयणकरिं परित्तावणकरिं उद्दवणकरिं भूओवघाइयं अभिकंखं नो भासेज्जा / - आचार चूला 4.10, द्रष्टव्य- दसवेआलियं, पृ. 348 14. दशवैकालिक सूत्र, 7.12 15. दशवैकालिक सूत्र, 7.6,7 16. दशवैकालिक सूत्र, 7.13-20 17. दशवैकालिक दीपिका, पृ.7-द्रष्टव्य- दसवेआलियं, पृ.39 - 12/7A, 'समता कुंज' जालम विलास स्कीम, पावटा 'बी' रोड़, जोधपुर (राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org