________________ 98 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 || जन-मन मंजु मुकुर मळ हरनी। किटं तिलक गुन गन बस करनी।। (रामचरित मानस, तुलसीदास) उन्होंने गुरु के चरण नखों की ज्योति को मणियों के प्रकाश के समान बताया है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है तथा शिष्य के अज्ञान रूपी अंधकार का नाश होता है। श्री गुरु पद नख मनि गनजोती। सुमिरत दिव्य दृष्टि हियँ होती। दळन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवह जासू।। (रामचरित मानस, तुलसीदास) उनके अनुसार गुरु कृपा से ही वे रामचरित मानस' लिख पाए हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि हिन्दी के भक्ति-साहित्य में गुरु के स्वरूप और उसकी महिमा का विस्तार से चित्रण हुआ है। चाहे सिद्ध साहित्य हो या नाथ साहित्य या फिर संत-साहित्य, सबमें गुरु को परमात्मा ही माना गया है। वह समय का देहधारी व्यक्ति होता है, स्वयं परमात्मा से मिला होता है तथा अपनी कृपा से वह शिष्य को नामदान देकर उसके समस्त पापों का विनाश करता है तथा संसार के आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक सभी त्रितापों का शमन करता है तथा अपने शिष्य के संसार के सभी बंधनों को समाप्त कर उसे अंधकार की कारा से छुटकारा दिलाता है। सतगुरु अपने नामदान से शिष्य को रूहानी यात्रा करवाता है तथा अंदर की धुन व प्रकाश से परिचित करवाता है। संत कबीर, नानक, रविदास, दादू, चरनदास, स्वामी शिवदयाल सिंह आदि सभी निर्गुण संतों, सूफी कवियों जायसी, साईं बुल्लेशाह, सुल्तान बाहु तथा सगुणधारा के तुलसीदास, भक्त कवयित्री मीराबाई ने सतगुरु की महिमा का भावातुर हृदय से बखान किया है, जो सिद्ध करता है कि सतगुरु की महिमा अनन्त है। वह संसार सागर को पार कर सकता है, क्योंकि गुरु ही साक्षात् परमात्मा के रूप में देह धारण करता है। सन्दर्भ: हिन्दी साहित्य का इतिहास : सं. डॉ. नगेन्द्र, पृ. 63 2. आदिग्रंथ पृ. 425 आदिग्रंथ, पृ. 1005 आदिग्रंथ पृ. 205 संतमत सिद्धांत व महाराज सावन सिंह, राधास्वामी सत्संग ब्यास, पृ. 12 एसोशिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय स्टाफ कॉलोनी, रेजीडेन्सी रोड़, जोधपुर-342011 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org