SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 97 | 10 जनवरी 2011 ] जिनवाणी मानते हुए कहती हैं कि उनकी कृपा से ही उनको ईश्वर के दर्शन हुए हैं - मीरा ने गोविन्द मिलायाजी, गुरु मिलिया रैदास। (मीरां) इसी तरह रैदास संत मिळे मोहि सतगुरु, दीन्हीं सुरत सहदानी। (मीरां) स्पष्ट है कि 'सुरत शब्द' का ज्ञान गुरु कृपा से ही होता है। उन्होंने एक पद में सतगुरु की महत्ता को दर्शाते हुए कहा है कि नव-विवाहित आत्मा जब प्रभु के धाम पहुँचती है तो अन्य सुहागिन आत्माएँ उससे पूछती हैं कि तू इतने समय तक कुँआरी क्यों रही ? आत्मा कहती है कि उसे अबतक सतगुरु नहीं मिले थे। सतगुरु ही उसके लिए वर ढूँढ़ कर, विवाह का लगन निश्चित करके उसका हाथ प्रभुरूपी वर के हाथ में दे सकते थे। अर्थात् प्रभु का मिलाप तब तक नहीं हो सकता जब तक सच्चा सद्गुरु नहीं मिलता - सुरता सवागण नार, कुंवारी क्यूँ रही। सतगुरु मिलिया नांय, कुंवारी बीरा यूं रही।। सतगुरु बेगि मिळाय, छिन में सात्वा सोडिया। झटपट लगन ळखाय, ब्याव बेगो छोड़िया।। (मीरां) मीरां ने सतगुरु को इस भवसागर से पार उतारने वाला कहा है, क्योंकि सतगुरु से जो नाम मिलता है, उस दुर्लभ पदार्थको पाकर संसार सागर से पार उतरा जा सकता है - पायो जी मैं तो राम रतन धन पायो। बस्तुअमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।। सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।। (मीरां) गोस्वामी तुलसीदास भी सद्गुरु को हरिरूप ही मानते हैं। उन्होंने अपनी सुप्रसिद्ध कृति ‘रामचरित मानस' में गुरु की वंदना करते हुए कहा है - बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रविकट निकट।। __ (रामचरित मानस, तुलसीदास) तुलसीदास ने गुरु के चरणकमलों की रज को संजीवनी जड़ी के समान माना है जो संसार के समस्त रोगों को नष्ट करती है। गुरु के चरणों की वह धूलि भक्त के मन के मैल को दूर करने वाली और उसका तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है - सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगळ मोद प्रसूती।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229957
Book TitleHindi Bhakti Sahitya me Guru ka Swarup aur Mahattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal Raigar
PublisherZ_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf
Publication Year2011
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy