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सामायिक साधना और प्राचार्य श्री
0 श्री फूलचन्द मेहता
अनुक्रमे संयम स्पर्शतोजी, पाम्यो क्षायिक भाव रे ।
संयम श्रेणी फूलड़ेजी, पूजूं पद निष्पाब रे ।। प्रात्मा की अभेद चिंतनारूप अतिशय गंभीर स्वानुभूतिपूर्वक समझने योग्य अनुक्रम से उत्तरोत्तर संयम स्थानक को स्पर्श करते हुए, अनुभव करते हुए क्षायिक भाव (जड़परिणति के त्यागरूप) मोहनीय कर्म क्षय करके उत्कृष्ट संयम स्थान रूप क्षीण मोहनीय गुणस्थान को प्राप्त हुए श्री वर्द्धमान स्वामी के पापरहित चरण कमलों को संयम श्रेणी रूप भाव-पुष्पों से पूजता हूँ-वन्दन-नमस्कार करता हूँ तथा अनन्य उपासना से उनकी आज्ञा की आराधना करता हूँ।
प्रस्तुत विषय परम गंभीर है, गूढ़ है, अति गहन व सूक्ष्म है। अतः विषय के प्रतिपादन में दृढ़ निष्ठा-लगन-रुचि-श्रद्धा-सम्यक् विवेक व आचरण-बल की अपेक्षा है । इतनी क्षमता-योग्यता-शरणता व अर्पणता के अभाव में भी विचारपूर्वक क्षमतानुसार शान्त-स्थिर-एकाग्र चित्त से श्री जिन वीतराग प्रभु के प्रति अत्यन्त आस्थावान होकर श्री परम सद्गुरु कृपा से सजग होकर विषय की गहराई को छूने का प्रयास मात्र कर रहा हूँ। भूल, त्रुटि, अवज्ञा, अविनय और विपरीतता कहीं हो जाय तो क्षमाप्रार्थी हूँ तथा विज्ञजनों से अपेक्षित सुधार. सुझाव की कामना करता हूँ।
विषय एक है जिसके सूत्र तीन हैं फिर भी तीनों एकरूप हैं। सामायिकसाधना में साधक (साधक चाहे आचार्य हो, उपाध्याय हो, साधु हो अथवा सम्यग्दृष्टि) मूल पात्र है। वही सामायिक-साधना का अधिकारी है।
यहाँ हम सर्वप्रथम साधक के स्वरूप का विचार करेंगे। वैसे साधना के योग्य मूल साधक आचार्य-उपाध्याय व साधु हैं और साध्य हैं श्री अरिहन्त-सिद्ध दशा, जो आत्मा की परिपूर्ण शुद्ध दशा है।
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