________________ * प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. * 121 अनेक गच्छों का उद्भव / उनमें पारस्परिक खण्डन-मण्डन की परम्परा ने भी जन्म लिया। 5. लोकाशाह द्वारा जैनाचार का उद्धार / इस प्रकार 'जैनधर्म का मौलिक इतिहास' ग्रन्थ के चारों खण्ड आगमिक परम्परा की पृष्ठभूमि में लिखे गये हैं। लेखन में उन्मुक्त चिन्तन दिखाई देता है। भाषा सरल और प्रभावक है, साम्प्रदायिक कटुता से मुक्त है / लेखकों ने आचार्यश्री के मार्गदर्शन में इतिहास के सामने कतिपय नये आयाम चिन्तन के लिए खोले हैं। - अध्यक्ष, पालि-प्राकृत विभान, नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर अमृत-करण - आचार्य श्री हस्ती * शस्त्र का प्रयोग रक्षण के लिए होना चाहिए, भक्षण के लिए नहीं / * भबसागर जिससे तरा जाये, उस साधना को तीर्थ कहते हैं। * मानसिक चंचलता के प्रधान कारण दो हैं-लोभ और अज्ञान / * नोटों को गिनने के बजाय भगवान् का नाम गिनना श्रेयस्कर है। * जो खुशी के प्रसंग पर उन्माद का शिकार हो जाता है और दुःख में आपा भूलकर विलाप करता है, वर इहलोक और परलोक दोनों का नहीं रहता। * मिथ्या विचार, मिथ्या आचार और मिथ्या उच्चार असमाधि के मूल कारण हैं। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org