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________________ औपपातिक सूत्र . . . . 251 उपस्थित जनसमदाय में से अनेक ने श्रमा धर्म और श्रावक धर्म स्वीकार किया। इन्द्रभूति गौतम की जिज्ञासा- आगम के इस उत्तरार्ध में इन्द्रभूति गणधर गैतम की जिज्ञासाओं का उल्लेख है, जिनका समाधान प्रभु महावीर ने किया। गणधर गौतम को जिज्ञासाएं जीवों के उपपान(जन्म) के विषय में हुई हैं। इनका विस्तृत उल्लेख सूत्र ६२ से आगम की समाप्ति पर्यन्त हुआ है। यहां उनका संकेत मात्र ही किया जा सकता है। उपपात में एकान्त बाल, क्लेशित, भद्रजन परिक्लेशित नारीवर्ग, द्विद्रव्यादि सेवी मनुष्यों के उपपात के वर्णन में प्रभु ने उनके आगामी जन्म, काल मर्यादा तथा आराधकविराधकान के विषय में समाधान किया है। इसके अतिरिक्ति उपपात में वानप्रस्थों, प्रवजित श्रमणों, परिव्राजकों, प्रत्यनीकों, आजीविकों, संज्ञी पंचेन्द्रिय, तियंचयोनि जीवों, निवों, अल्पांरभी आदि मनुष्यों, अनारंभी श्रमों, सर्वकामादि विरतों के उपपात संबंधी जिज्ञासाओं का सुन्दर समाधान भी यहां प्राप्त होता है। आचारांग सूत्र के 'मैं कौन कहां से आया, कहां जाना' के मूल विषय की विस्तृत व्याख्या के रूप में उपपपात का यह विस्तृत उल्लेख 'उववाइय' आगम को आवारांग का उपांग प्रमाणित करने की दृष्टि से उल्लेखनीय है। परिव्राजक परम्पराएँ- उपपात विषय के उल्लेख के अन्तर्गत परिव्राजक वर्ग की विभिन्न परम्पराओं का उल्लेख शोधार्थियों के लिए अतीव महन्वपूर्ण है। सांख्य, कापिल, भार्गव (भगुऋषि) एवं कृष्णा परिव्राजकों का उल्लेख हुआ है। इसके साथ ही आठ ब्राह्मण एवं आठ क्षत्रिय परिव्राजकों का उल्लेख प्राप्त होता है। इन परिव्राजकों के आचार, विचार, चर्या, पात्र, वेश, शुचि, विहार आदि का वर्णन किया गया है। यह वर्णन ७६ वें सूत्र से ८८ तक उपलब्ध है। वानप्रस्थ परम्पराएँ प्रस्तुत आगम के सूत्र ७४ में विभिन्न वानप्रस्थ परम्पराओं का उल्लेख मिलता है। गंगातट पर निवास करने वाले इन वानप्रस्थों की मूल पहिचान इनके नामों से बताई गई है जैसे होतृक-अग्नि में हवन करने वाले आदि। इनकी एक लम्बी सूची यहां दी गई है। इन्द्रभूति गनम गणधर की जिज्ञासा के समाधान स्वरूप प्रभु महावीर ने इनकं उत्पात आयुष्य तथा आराधक-अनारधक होने के विषय में कथन किया है। अम्बड़ परिव्राजक एवं उसके 700 अंतेवासी - अम्बड़ की श्रावक-धर्म की साधना. उसकी अवधि, वैक्रिय एवं वीर्यलब्धियां तथा उसकी प्रिंयधर्मिता एवं अरिहंत वीतराग देव के प्रति दृढ़ता का वर्णन प्राप्त होता है। यहां अंबड़ के उतरवर्ती भव भी बताए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229822
Book TitleAuppatik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Karnavat
PublisherZ_Jinavani_003218.pdf
Publication Year2002
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size119 KB
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