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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक पाटपोपगमन के भी व्याघानिम और निर्व्याघातिम भेद हैं। इसी प्रकार भक्तप्रत्याख्यान के व्याघातिम. निव्याघातिय भेद बताए हैं: व्याघ्रातिम का अर्थ व्याघात जैसे हिंसक पशु या दावानल आदि उपद्रव की उपस्थिति में आजीवन आहार त्याग। नियघानिम में उपद्रव न होने पर गृत्युकाल समीप जानकर आजीवन आहार त्याग। अवमोदारिका के दो भेद- द्रव्यवमारिका, भावअवमारिका। द्रव्यावमोदरिका में उपकरण एवं भक्त पान की मर्यादा होती है। भक्त पान में ८ ग्रास, १२,१६, २४, ३० एवं ३२ ग्राम की मर्यादा से आहार लेना होता है। भाव अवमोदारिका अनेक प्रकार को है, यथा- क्रोधादि कषायों की अल्पता या अभाव का अभ्यास। भिक्षाचर्या-अभिग्रह सहित द्रव्य, क्षेत्र . काल एवं भाव की अपेक्षा इसके ३० भेदों का उल्लेख किया गया है। इसी प्रकार कायक्लेश में अनेक भेदों का उल्लेख प्राप्त होता है- एक ही प्रकार से बैठे या खड़े रहना। मासिकादि प्रतिमा स्वीकारना, कठोर आसन में रहना तथा थूक आने पर न थूकना. खुजली आने पर भी नहीं खुजालना, देह को कपड़े आदि से नहीं ढंकना परन्तु यह सब समभाव से कर्म-निर्जरा या आत्म-शुद्धि के लिए किया जाता
आभ्यंतर तपों में विनय के ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि के भेटोपभेदों से कुल ४५ भेदों का उल्लेख मिलता है। ध्यान-आर्त और रौद्र ध्यान के ४ प्रकार एतं ४ लक्षणों के भेदों के साथ धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान के ४ भेट, ४ लक्षण, . आलम्बन एवं ४ अनुप्रेक्षाओं के क्रम से प्रत्येक के ४--४ भेट बताए गए है। पाठक इनका विस्तृत अध्ययन इस आगम से कर सकते हैं। तीर्थकर भगवान महावीर द्वारा धर्मदेशना– ३४ अतिशय युक्त तथा ३५ वाणी के गुणों सहित प्रभु महावीर ने उपस्थित देव-देवियों, जन समुदाय एवं राजा कृणिक आदि की विराट् परिषद् को स्यादवाद शैली में धर्मदेशना दी। प्रभु ने आगार, अणगार दो प्रकार के धर्म बताए। लोकालोक के अस्तित्व कथन के साथ जीवादि ९ तत्त्वों का कथन किया। भगवान ने बताय कि अटारह पाप त्यागने योग्य हैं सुकत सफलदायी एवं द्रष्कृत्य द:खदायी होने हैं। कर्मजनित आवरण के क्षीण होने से स्वस्थता एवं शांति प्राप्त होती है। प्रभु ने ४ गतियों के बंध के कारण भी बताए।
निर्ग्रन्थ-प्रवचन प्रशिभेट करने वाला, अनुत्तर, अद्वितीय, संशद्ध एवं निर्दोष है तथा सर्वदुःखों का विनाशक है। इस मार्ग के साधक महर्द्धक देव या नक्ति के अधिकारी बनते हैं।
भगवान महावीर से आगर-माणगार टो प्रकार के धर्म को सुनकर
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