________________ 198...... . जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क आनन्द नहीं लेते थे। नींद आती तो अपने को खड़ा करके जमा लेते थे। वे थोड़ा सोते अवश्य थे, पर नींद की इच्छा रखकर नहीं (115) / यदि रात में उनको नींद सताती, तो वे आवास से बाहर निकलकर इधर-उधर घूम कर फिर जागते हुए ध्यान में बैठ जाते थे (116) / ___ महावीर ने लौकिक तथा अलौकिक कष्टों को समतापूर्वक सहन किया (117,118) / विभिन्न परिस्थितियों में हर्ष और शोक पर विजय प्राप्त करके वे समता युक्त बने रहे (119) / लाढ़ देश के लोगों ने उनको बहुत हैरान किया। वहां कुछ लोग ऐसे थे जो महावीर के पीछे कुत्तों को छोड़ देते थे। कुछ लोग उन पर विभिन्न प्रकार से प्रहार करते थे (120,121,122) / किन्तु, जैसे कवच से ढका हुआ योद्धा संग्राम के मोर्चे पर रहता है, वैसे ही वे महावीर वहां दुर्व्यवहार को सहते हुए आत्म-नियन्त्रित रहे (123) / दो मास से अधिक अथवा छ: मास तक भी महावीर कुछ नहीं खाते-पीते थे। रात-दिन वे राग-द्वेष रहित रहे (124) / कभी वे दो दिन के उपवास के बाद में, कभी तीन दिन के उपवास के बाद में, कभी चार अथवा पांन दिन के उपवास के बाद में भोजन करते थे (125) / वे गृहस्थ के लिए बने हुए विशुद्ध आहार की ही भिक्षा ग्रहण करते थे और उसको वे समता युक्त बने रहकर उपयोग में लाते थे (127) / महावीर कषाय रहित थे। वे शब्दों और रूपों में अनासक्त रहते थे। जब वे असर्वज्ञ थे, तब भी उन्होंने साहस के साथ संयम पालन करते हुए एक बार भी प्रमाद नहीं किया (128) / महावीर जीवन पर्यन्त समता युक्त रहे (129) / आचारांग के उपर्युक्त विषय विवेचन से स्पष्ट है कि आचारांग में जीवन के मूल्यात्मक पक्ष की सूक्ष्म अभिव्यक्ति हुई है। -एव 7. चितरंतन मार्ग. सी स्कीग, जयपुर(राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org