________________ 136. . जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क| इति वचनात (नत्त्वार्थरलोकवार्तिक, पृ.६ (ख) द्रव्य श्रुतं हि द्वादशांगवचनात्मकमाप्तोपदेश रूपमेव, तदर्थज्ञान तु भावश्रुतं, तदुभयमपि मणवरदेवानां भगवदर्हत्सर्वज्ञवचनानिशयप्रसादात् स्वमतिश्रुतज्ञानावरगवीर्यान्तरण्यक्षयोपशमातिशयाच्च उत्पद्यमानं कथमान्तायत्तं न भवेत् ? (तत्वार्थश्लोकवार्तिक) 5. तदिवसे नेव सुहम्माइरियो जंबूसानीयादी मणेयागनाइरिया वखणिटुवालसंगो बाइन उस्कखयेन केवली जाटो : (जयवल, पृ.८४) १०.अंगपगपत्ति 11. दिगम्बर परम्परा में 11 वें पूर्व का नाम कल्याण है। 12. श्वेताम्बर परम्परानुसार पूर्वो की उपर्युक्न पदसंख्या समवायांग एवं नन्दीवृत्नि के आधार पर तथा दिगम्बर परम्परानुसार पदसंख्या धवला, जयधवला, गोम्मटसार एवं अंग पण्णति के अनुसार दी गई है। (सम्पाटक) 13. यतोऽनन्तार्श पूर्व भवति, तत्र च वीर्यमेव प्रतिपाद्दते, अनन्नार्थता चातोऽवगनन्तव्या तद्यथा सलनईणं जा होज्ज बालुया गणणमागया सन्ती। तत्तो बहुयतरागो, एस्सस अत्थो पुनस्स / 1 / / सलसमुहाजलं, जइ पत्थमियं हविज्ज संकलिय। एतो बहुयतरागो, अत्थो एगस्स पुव्वस्स।।२।। तदेव पर्वार्थस्यान त्याद्रीयस्य तदर्थ ल्वादनन्तता वीर्यस्येति। सूत्रकृताग, (वोर्याधिकार) शीलांकाचार्यकृता टीका, आ. श्री जवाहरलाल जी म. द्वारा संपादित, पृ. 335) 14. नंदीसूत्र (धनपतिसिंह द्वारा प्रकाशित) पृ. 482-84 15. दो लक्खा अट्ठासीई पयसहस्साई पयारणं.... (नंदी, पृ. 4.0 8., रय धनपतिसिंह) 16. चउरासीडपयसहस्साई पयग्गेण पणाला....(समवायांग, पृ.१७९अ, राय धनपतिसिंह) 17 तित्थोगालो एत्थं वत्तन्वा होई आणपव्वीए। जे तस्स उ अंगस्स, वन्दो जहिं विगिटठो।। व्या. भा. 10.784 18. नंदीचूर्णि, पृ. 9 (पुण्यविजयजी म. द्रारा संपादित) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org