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अनुसन्धान- ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २
चतुर्भुजाख्यश्रद्धालुविरचिता रामचदर्षिकृत- प्रकाशाख्यटीका-विभूषिता नेमिजिनस्तुतिः
सं. श्रीजगच्चन्द्रसूरिशिष्य मुनि शीलचन्द्रविजय
गिरनारमण्डन श्रीनेमिनाथ प्रभुनी प्रस्तुत स्तुति चतुर्भुज नामना श्रावके रची छे. स्तुति संस्कृत भाषामां अने सममात्र नामना छन्दमां रचवामां आवी छे. गेयता अने मंजुल पदावलिने लीधे कृति खूब आनन्ददायक बनी छे. काव्यनी शैली परथी कर्ता विदग्ध पण्डित होवानुं जणाई आवे छे.
लोकागच्छीय श्रीरामचन्द्रर्षिसे आ स्तुति पर 'प्रकाश' नामनी सरळ अने सुबोध टीका रचीने काव्यना मनोरम भावो सुधी पहोंचवानुं घणुं सहेलुं करी आप्युं छे. तेओओ आ टीका वि.सं. १९२३ना कारतक महिनामां बालुचर नगरमां (अजीमगंज पासे) श्रीअमृतचन्द्रसूरिजीना सांनिध्यमां रची छे. टीकाकार विद्वान छे से तो टीका वांचतां सहेजे समजाय छे, पण ६ठ्ठा श्लोकनी टीकामां तेओ पोताने मन्दमति तरीके जणावे छे अने टीकाना अन्ते विद्वानोने आ टीकाना शुद्धीकरण माटे प्रार्थना करे छे ते तेओनी निरभिमानिता सूचवे छे. ६ठ्ठो श्लोक पोताने अशुद्धरूपमां मळ्यो छे अवुं तेओ ते श्लोकनी टीकामां जणावे छे; जे परथी अवुं जणाय छे के मूळ काव्यना कर्ता तेओथी घणा पूर्ववर्ती होवा जोइओ. टीकाना आरम्भे मङ्गलश्लोकमां कोइ व्यक्तिविशेषने स्थाने व्याप्ति, व्यक्ति, स्फोट अने सिद्ध- ओम चार रूपवाळा तत्त्वने नमस्कार कर्यो छे ते नोंधपात्र छे. टीकामां रूपसिद्धि माटे पाणिनीय अष्टाध्यायीनां सूत्रो टांकवामां आव्यां छे.
बालुचर नगरमां ज वि. १९२४ना पोष महिनामां लखवामां आवेली प्रत परथी प्रस्तुत कृतिनुं सम्पादन करवामां आव्युं छे. प्रतमां अशुद्धिओ घणी छे, जेनुं मार्जन करवानो यथाशक्य प्रयत्न करवामां आव्यो छे. सम्पादननो अनुभव न होवा छतां देवगुरुधर्मनी कृपा पर श्रद्धा राखी आ प्रथम प्रयत्न