________________ अनुसन्धान-५७ है, जिसका उल्लेख पञ्चदण्डातपत्रछत्र प्रबन्ध के नाम से किया जा चुका है। दूसरी कृति के कर्ता तपागच्छ के मुनिसुन्दरसूरि के शिष्य शुभशील बताये गये है। इसका रचनाकाल वि.सं. 1490 है / (12) पूर्णचन्द्रसूरि के द्वारा रचित विक्रमादित्यपञ्चदण्ड छत्र प्रबन्ध नामक एक अन्य कृति का उल्लेख भी 'जिनरत्नकोश' में हुआ है / यह एक लघुकृति है इसके ग्रन्थाग्र 400 है / (13) 'विक्रमादित्य धर्मलाभादिप्रबन्ध' के कर्ता मेरुतुङ्गसूरि बताये गये है। इसे भी कान्तिविजय भण्डार बडौदा में होने की सूचना प्राप्त होती है। (14) जिनरत्नकोश में विद्यापति के 'विक्रमादित्य प्रबन्ध' की सूचना भी प्राप्त है / उसमें इस कृति के सम्बन्ध में विशेष निर्देश उपलब्ध नहीं होते हैं। (15) 'विक्रमार्कविजय' नामक एक कृति भी प्राप्त होती है। इसके लेखक के रूपमें 'गुणार्णव' का उल्लेख हुआ है। इस प्रकार जैन भण्डारो से 'विक्रमादित्य से सम्बन्धित पन्द्रह से अधिक कृतियों के होने की सूचना प्राप्त होती है / इसके अतिरिक्त मरुगुर्जर और पुरानी हिन्दी में भी विक्रमादित्य पर कृतियों की रचना हुई है। इसमें तपागच्छ के हर्षविमल ने वि.सं. 1610 के आसपास विक्रम रास की रचना की थी। इसी प्रकार उदयभानु ने वि.सं. 1565 में विक्रमसेन रास की रचना की / प्राच्यविद्यापीठ शाजापुर में भी विक्रमादित्य की चौपाई की अपूर्ण प्रति उपलब्ध है / इस प्रकार जैनाचार्यों ने प्राकृत संस्कृत, मरुगुर्जर और पुरानी हिन्दी में विक्रमादित्य पर अनेक कृतियों की रचना की है - ऐसी अनेको कृतियों का नायक पूर्णतया काल्पनिक व्यक्ति नहीं माना जा सकता है / प्राच्य विद्यापीठ दुपाडा रोड, शाजापुर (म.प्र.) 465001