________________
डिसेम्बर २०१०
१५९
श्लोक १७० अने १७३ मां टीकानो पाठ मूळमां घूसी गयो हतो तेने काढी मूळ शब्दो यथास्थाने गोठववानुं पण ताडपत्रना आधारे शक्य बन्युं. श्लोक ८ नी टीकामां प्रातिभज्ञानने अन्य दर्शनीओ पण नामान्तरे स्वीकारे छे ए जणावतां एक नाम नितीरण आव्युं छे. आ नितीरण शब्द कया दर्शननो छे ते ख्याल नहीं आववाथी ए अशुद्ध हशे एम समजी एना निरीक्षण, तीरण व. सुधारा सूचवाया छे. ताडपत्रमा आ शब्द पर 'बौद्धानाम्' एवी टिप्पणी मळी. अने 'नितीरण' शब्द ज साचो होवानी प्रतीति थई, एथी आनन्दआनन्द थई गयो. आवा आनन्दपूर्ण अनुभवो तो घणा थया, पण बधाने अहीं वर्णववानी जग्या नथी. एक वातनी खातरी छे के आ सम्पादनने माणनाराने पण एवा ज अनुभव थया वगर नहीं रहे.
एक वातनी स्पष्टता जरूरी छे के ताडपत्रीय भिन्न पाठोने युक्तता चकास्या पछी ज स्वीकारवामां आव्या छे. ज्यां मुद्रित पाठ ज वधु उपयुक्त लाग्यो त्यां मुद्रित पाठने ज उपर राखी ता. पाठने टिप्पणमां मूकवामां आव्यो छे. ज्यां मु. पाठ पण ता. पाठनी जेम ध्यानार्ह लाग्यो त्यां मु. पाठ टिप्पणमां आप्यो छे. अभ्यासीओनी सुविधा माटे तमाम संशोधित पाठोनी एक सूचि पण मूकवामां आवी छे.
व्यवस्थित मुद्रण - आमां विरामचिह्न, अवग्रह, अवतरणचिह्न व.नी योजना अने ग्रन्थप्रतीक, अवतरणिका, उद्धरण व.ना विभागनो समावेश थाय छे. आ बधी बाबत स्वयं भले नानी होय, पण एने लीधे अर्थबोधमां घणीवार मोटो फरक पडी जाय छे. दा.त. श्लोक-१५९- अवतरणिकावाक्य श्लोक १५८नी टीकानो अन्तिमवाक्य तरीके मुद्रित थयुं छे. आ वाक्यनो १५८मा श्लोक साथे मेळ गोठववो शक्य ज नथी, छतां वर्षोथी एम ज छपातुं आव्यु छे. श्लोक-९८ टीकामां प्रेक्षावान् माटे प्रयोजायेला शब्द 'यथाऽऽलोचितकारिणां' नी जग्याए 'यथा लोचितकारिणां' एवो मुद्रित पाठ केटलो जुदो अर्थ दर्शावे छे !
_ विरामचिह्नोनी अस्तव्यस्तता केटली मुश्केली सर्जे तेनुं एक श्रेष्ठ उदाहरण श्लोक ९४नी टीकामां जोवा मळ्युं. मुद्रित पाठ आवो हतो - "कोशपानं विना ज्ञानोपायो नाऽस्त्यत्र = स्वभावव्यतिकरे युक्तिः =