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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ शुष्कतर्क-युक्त्या। कश्चिदपरो दृष्टान्तोऽप्यस्याऽर्थस्योपोद्बलको विद्यते नवेत्याह - विप्रकृष्टो०" आनो अर्थ समजवामां बहु मुश्केली पडी हती. एक तो पहेलां कोइ दृष्टान्त अपायुं ज नथी तो अपर दृष्टान्त केवी रीते कहेवाय ? बीजुं मूळ श्लोकमां आवेलो ‘यतः' शब्द अहीं दृष्टान्त फक्त निदर्शन माटे नहीं, पण हेतु तरीके छे एम सूचवतो हतो, ज्यारे उपर मुजब तो एर्नु अवतरण फक्त निदर्शन माटे थतुं हतुं. प्रश्नोत्तरनी आ रीत पण अयोग्य छे एम न्यायनो सामान्य अभ्यासी पण कही शके तेम हतुं. आ माटे ताडपत्रमा जोयुं तो मूंझवण घटवाने बदले ओर वधी, कारण के एमां 'विद्यते एवेत्याह' हतुं, जे सूचवतुं हतुं के 'विद्यते नवेत्याह' ए अर्थनी अणसमझने लीधे करवामां आवेलो सुधारो हतो. हवे तो 'कश्चिदपरः' पण कई रीते जोडq ए प्रश्न बन्यो. बहु मथामण करी त्यारे अचानक झबकारो थयो के पाठ आम होवो जोइए - "कोशपानं विना ज्ञानोपायो नाऽस्त्यत्र = स्वभावव्यतिकरे युक्तितः = शुष्कतर्क-युक्त्या कश्चिदपरः । दृष्टान्तोऽप्यस्याऽर्थस्योपोद्बलको विद्यते एवेत्याह-विप्रकृष्टो०" आम विरामचिह्नोनी गोठवण बदलवा मात्रथी बधी मूंझवण टळी जाय छे ते स्वयं समजाय तेवू छे. व्यवस्थित मुद्रण विद्यार्थीनो अडधो श्रम ओछो करी नांखे छे ते जातअनुभवनी वात छे अने अहीं माटे ज एना पर एटलो भार मूकवामां आव्यो छे. ग्रन्थनी उपादेयतामा वृद्धि
योगदृष्टि०मां विषयनिरूपण ए रीते छे के एकमांथी बीजा अने बीजाथी त्रीजा विषयमा प्रवेश थतो रहे. एटले घणीवार एवं बने के विद्यार्थीने समझण ज न पडे के आ विषयनो मूळ विषय साथे कयो सम्बन्ध छ ? आ मूंझवण टाळवा विस्तृत विषयानुक्रम मूकवामां आव्यो छे.
अभ्यासीओनी सुविधा माटे १. मूळपाठ, २. श्लोकानुक्रमणिका, ३. उद्धृतपाठसूचि, ४. विशेषनामसूचि, ५. विशिष्टविषयसूचि, ६. दृष्टान्तादिसूचि, ७. विशिष्टशब्दसूचि, ८. पारिभाषिक शब्दसूचि, ९. संशोधितपाठसूचि - एवां नव परिशिष्टो मूकवामां आव्यां छे. आमां ७-८ परिशिष्ट अंगे थोडंक कहेवू जरूरी लागे छे. श्रीहरिभद्रसूरिजीना वाङ्मयनी भाषा, शैली, विषयपसंदगी व. तमाम पासां पर बौद्धदर्शननी ऊंडी असर जणाय छे. तेओए ललितविस्तरादि ग्रन्थोमां