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उमास्वाति - आर्यसमुदनां नवप्राप्त पद्यो विषे
मधुसूदन ढांकी
उपर्युक्त विषयमा मुनिवर शीलचन्द्र विजयजीए "ट्रंकी नोंध" १. ऋण मूल्यवान पद्यो अन्तर्गत अनुसंधान अंक ३, पृ. २१ पर उमास्वातिनां बे तथा त्यां पृ. २२ पर आर्य समुद्रना नामे उध्धृत थयेल एक पद्य विषे रसप्रद अने माहितीपूर्ण चर्चा करी छे. अने अनुसंधान अंक ४, पृ. १७ पर एमणे 'वाचक' नामे उध्धृत थयेला एक विशेष पद्य पर ध्यान दोयुं छे, जे उमास्वातिनुं होवानुं एमनुं सूचन छे. प्रस्तुत अंक ४ मां मुनिराज महाबोधिविजये पण उमास्वाति संबंधित एक पद्य विषे उपयुक्त अने पूरक माहिती साथे चर्चा करी छे. अहीं जे अवलोकनो रजू करूं छं ते उपरकथित बने चर्चाओने अनुसंधाने छे.
( १ )
वाचक उमास्वातिए एमनी हाल उपलब्ध छे ते कृतिओ - सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र, प्रशमरति प्रकरण, अने क्षेत्रसमास जम्बूद्वीपसमास - अतिरिक्त अन्य प्रकरणो रच्यां हशे ते वात निःशंक छे. (अलबत्त एमणे ५०० प्रकरणो रच्यां होवानी, ओछामां ओछु जिनदत्तसूरिना गणधरसार्धशतक (इ.स. १०४८ ) थी नोंधाती आवती किं वदन्तीने तथ्यपूर्ण मानी लेवानी जरुर नथी.) पण मुनिप्रवर शीलचन्द्र विजयजीए उध्धृत थयेलां प्रतिमा- प्रतिष्ठा विधि एवं प्रतिमा स्त्रापन - विधिने लगतां जे बे पद्यो १४ मी सदीनी पोथीमां अपायेल हाथनोंध परथी प्रस्तुत कर्यां छे ते वस्तु-विषय अने शैलीनी दृष्टिए मध्यकाळना कोई चैत्यवासी जतिनी रचना होवानुं प्रतीत थाय छे. उमास्वातिनी पद्यगुम्फनरीतिमां प्राच्यतानो स्पर्श छे, अने ते पूर्णतया निजस्वी छे: पछीना कर्ताओमां एमनी विशिष्ट शैलीनां दर्शन (या अनुकरण पण ) बिलकुलेय थतां नथी. जेम "पूजा-विधि - प्रकरण " जे स्पष्टतया बहु मोडेनी रचना छे - तेमने नामे चढी गयुं तेम उपर्युक्त बे प्रकरणो पण पश्चातकालीन कर्तानी कृतिने प्राचीनतम अने प्रमाणभूत ठराववा १३मा शतक पहेला कोइए चढावी दीधां छे. परन्तु नवांगवृत्तिकार अभयदेवसूरिनी स्थानांगवृत्ति अंतर्गत 'वाचक मुख्य उमास्वाति' ना नामथी उध्धृत थयेलां दान विषयने लगतां सिलसिलाबंध आठ पद्यो शैलीनी दृष्टिए एमनां जणाय छे. (ए कदाच एमनी विनष्ट श्रावकप्रज्ञप्ति अथवा दानप्रकरण जेवा नामनी जुदी ज
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