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जून - २०१२
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बालस्य यथा वचनं, काहलमपि शोभते पितृसकाशे । तद्वत् सज्जनमध्ये, प्रलपितमपि सिद्धिमुपयाति ॥
(प्रशमरति - ११)
टिप्पणी १. सम्यक्त्वीनुं ज्ञान ते ज्ञान अने मिथ्यात्वीनुं ज्ञान ते अज्ञान - आवी जैन
प्रमाणशास्त्रीय व्यवस्था अनुसार आ अर्थ थाय छे. २. जैन-प्रमाणशास्त्रीय परिभाषा अनुसार 'उपयोग' शब्द पण ओक करतां वधु अर्थ
धरावे छे : १) शक्तिने क्रियात्मक स्वरूपे प्रयोजवी. जेमके मतिज्ञानशक्तिजन्य ४ विलक्षण क्रियाओ छे - मतिज्ञानसाकारोपयोग, मत्यज्ञानसाकारोपयोग, चक्षुदर्शननिराकारोपयोग, अचक्षुदर्शननिराकारोपयोग. आ अर्थ वखते उपयोगशब्द बोधक्रियाओ अने अवलोकनक्रियाओ दर्शावतो होवाथी ज्ञान अने दर्शन शब्दनो पर्यायवाची बने छे. २) ज्ञान (-बोधक्रिया) अने दर्शन (-अवलोकनक्रिया) आत्माना मूलभूत गुणो छे. तेथी आत्मामां हरहमेश बोधक्रियाओ अने अवलोकनक्रियाओ प्रवर्तमान ज होय छे. (जेनो कोई ने कोई पर्याय द्रव्यमां सदाकाल विद्यमान न रहेतो होय, ते मूळभूत गुण न गणाय.) ध्यानमा राखवा जेवी बाबत ओ छे के आत्मा सभानपणे तो ते बे के तेथी वधु क्रियाओमांथी कोईपण ओकमां ज व्याप्त होय छे. (अटले तो आपणने ध्यान बीजे होय तो कानमां अवाज पेसवा छतां संभळातुं नथी.) आ सभानता त्यारे ज जन्मे छे के ज्यारे आत्मा बोधक्रिया के अवलोकनक्रियामां तन्मय थई तथाप्रकारनी परिणतिने पामे छे. आ आत्मिक परिणति के तज्जन्य जागृति ज 'उपयोग' तरीके ओळखाय छे.
"जुगवं दो नत्थि उवओगा" जेवा स्थळे उपयोग-शब्द आवो ज भाव धरावे छे. ३. आ त्रणे वादोनी चर्चाने सम्बन्धित तमाम साहित्यनी सूची माटे जुओ -
'उपयोगवादनुं समग्र साहित्य' - ले. श्रीहीरालाल रसिकदास कापडिया, जैन
सत्यप्रकाश - वर्ष ९, अङ्क ८, पृष्ठ ३८६-३८८ ४. वस्तुगत सामान्यनुं ग्राहक ते दर्शन अने वस्तुगत अनन्तानन्त विशेषोनुं ग्राहक
ते ज्ञान - आवी मान्यता पर आधारित आ तर्क छे. आ मान्यतानी चकासणी
माटे जुओ - 'दर्शन विशे विचारणा' - अनुसन्धान ५६, पृष्ठ १४३-१७३ ५. कर्मना आंशिक क्षय अने आंशिक उपशमथी जन्य अवस्था क्षायोपशमिक गणाय
छे. (क्षय- विघात, उपशम- शक्तिहनन) अने कर्मना सर्वथा क्षयथी उद्भवती