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अनुसन्धान-५९
ओक ज उपयोगनां परस्पर भिन्न बे स्वरूप समजे छे. महत्त्वनी वात ओ छे के केवलज्ञान अने केवलदर्शनने स्वतन्त्र उपयोगो गणो के ओक ज उपयोगनां परस्पर भिन्न बे स्वरूप समजो, बन्नेनी परस्पर जे विलक्षणता छे ते तो नाबूद थती ज नथी. हवे, भेदाभेदवाद तरफथी युगपद्वादना खण्डनमा जे दलीलो श्रीअभयदेवसूरिजी रजू करे छे, तेनो मुख्यप्रहार केवलज्ञान-दर्शननी भिन्नता पर छे (सन्मति० २.१०-२.१४ विवरण) तो स्वयं भेदाभेदवाद जे भिन्नताने मान्य राखे छे, ते ज भिन्नताने लक्ष्य बनावी ए युगपद्वादनुं खण्डन करी शके खरो ? भेदाभेदवादमां आ भिन्नता कथञ्चिद् छे अने युगपद्वादमां औकान्तिक छे, ओवी भेदरेखा पण बन्ने वच्चे दोरी न शकाय. केम के युगपद्वाद पण केवलज्ञान अने केवलदर्शनने प्रमातृतः (बन्नेनो स्वामी आत्मा ओक ज छे ओ रीते), कालतः अने शक्तितः ओक गणे ज छे. माटे तेने
स्वीकारेली बन्ने वच्चेनी भिन्नता पण भेदाभेदवादनी जेम कथञ्चित् ज छे. ४. आचार्य प्रस्तुत समग्र केवलचर्चाने अन्ते जे निष्कर्ष बतावे छे
"साइ अपज्जवसियं ति दो वि ते ससमयओ हवइ एवं ।
परतित्थियवत्तव्वं च एगसमयंतरुप्पाओ' ॥२.३१॥ । तेमां पण युगपद्वादपरक ज निष्कर्ष देखाड्यो छे अने क्रमवादने ज परमत गण्यो छे, युगपद्वादने नहीं. तो जो आचार्य चर्चानी शरूआतमां युगपद्वादनो परपक्ष तरीके निर्देश न करतां होय, अन्ते युगपद्वादपरक ज निष्कर्ष दर्शावतां होय, चर्चा दरम्यान पण युगपद्वादनुं नामग्रहणपूर्वक साक्षात् खण्डन न करतां होय, तो शा माटे युगपद्वादनी ज भूमि पर उछरेला तेमना मन्तव्यने युगपद्वादनुं विरोधी गणवू जोइओ ? ५. आपने जोइ| तेम हवे पछीनी गाथाओमां पण साक्षात् क्रमवादनुं ज
खण्डन छे. तेने युगपद्वादना खण्डनपरक बनाववा टीकाकार भगवन्तने जे शाब्दिक खेंचताण अने परिश्रम करवा पडे छे ते पण ध्यानपात्र छे.
आ समस्याओने ध्यानमां लेता वास्तवमा 'हंदि दुवे णत्थि उवओगा' ओ पङ्क्ति, युगपद्वाद(-भेदाभेदवाद)-क्रमवादनी चाली रहेली चर्चामां क्रमवादी