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जून - २०१२
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तरफथी ज मूकाई छे ओम समजाय छे. कारण के शरूआतमां स्वपक्षनुं स्थापन युगपद्वादना परिष्कृत स्वरूप भेदाभेदवाद परक ज थयुं छे. "केवलणाणं पुण दंसणं ति णाणं ति य समाणं" कहीने (२.३) त्यां ज आचार्ये भेदाभेदवादनो उपन्यास करी दीधो छे. माटे आ गाथामां अचानक युगपद्वादना विरोधी तरीके भेदाभेदवादनो प्रवेश मानवानी जरूर नथी जणाती.
__ हवे पछीनी गाथाओमां आचार्य बन्ने उपयोगर्नु सह-अस्तित्व सिद्ध करवा प्रयत्न करे छे ते पण अत्रे ध्यानार्ह छे.
जइ सव्वं सायारं जाणइ एक्कसमएण सव्वण्णू ।
जुज्जइ सयावि एवं अहवा सव्वं न याणाइ ॥२.१०॥ टी. - (सामान्य अने विशेष परस्पर अव्यतिरिक्त होवाथी अने केवलज्ञान सामान्य-विशेष उभयात्मक वस्तुना अवबोधरूप होवाथी) केवली भगवन्त जो अकसमयमां बधी ज वस्तुओने विशेषपणे (जाणता छतां तदात्मक सामान्यने त्यारे ज जुओ छे अथवा तो ते सामान्यने जोता छतां तेनाथी अव्यतिरिक्त अवा विशेषोने त्यारे ज) जाणे छे; तो ज (तेओनुं सर्वज्ञत्व अने सर्वदर्शित्व) सदाकाल माटे योग्य जणाय छे.
अथवा -(ओकला सामान्यने जोनाएं केवलदर्शन अने ओकला विशेषोने जाणनारुं केवलज्ञान असत् बनवाथी क्रमवाद के युगपद्वादमां केवली) सर्व नथी जाणता.
वि. - आ गाथानो युगपद्वादना खण्डनपरक अर्थ करवा माटे जे उमरण करवू पडे छे अने शब्दोना अर्थने जे हदे बदलवा पडे छे ते जोतां आ गाथानो आवो अर्थ न होई शके ते स्वयं समजाय तेवू छे, माटे ते परत्वे झाझी टिप्पणी आवश्यक नथी.
वास्तवमां आ युगपद्वादी (-भेदभेदवादी) तरफथी क्रमवाद सामे करवामां आवती सरळ दलील छे के जो केवली ओक समयमां बधी ज वस्तुओने साकारपणे जाणे छे, तो कायम माटे जाणशे ज. (कारण के पहेली क्षणे प्रवर्तेलो साकार उपयोग बीजी क्षणे न प्रवर्ते ते माटे कोई प्रतिबन्धक तो छ ज नहीं) अथवा वगर प्रतिबन्धके पण तेनो अभाव मानशो तो ते बधुं