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जून
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२.
२०१२
३.
णवतिमां अनुक्रमे २२४ अने २४८ क्रमाङ्के जोवा मळे छे.
वि. आ बन्ने गाथाओमां दर्शावेलो भाव धरावती गाथाओ विशेष
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दंसणणाणावरणक्खए समाणम्मि कस्स पुव्वअरं । होज्ज समं उप्पाओ हंदि दुए णत्थि उवओगा ॥२.९॥
वि.
टी. - दर्शनावरण अने ज्ञानावरण बन्नेनो क्षय समानकालीन होवाथी कोनो पहेलां उत्पाद मानशो ? ( मतलब के पहेलां केवलज्ञान प्रगटे के केवलदर्शन ? तेमां कोई नियामक नथी. माटे) बन्नेनो साथे उत्पाद थाय छे ओम मानवुं जोइओ. (आम युगपद्वादीओ कहे छते अभेदवादी आचार्य स्वमन्तव्य दर्शावतां कहे छे के) पण ओक साथे बे उपयोग होता नथी. टीकाकार भगवन्तना मते आ गाथाथी सिद्धसेन दिवाकरजीना स्वपक्ष अभेदवाद(-भेदाभेदवाद) नी स्थापना थई छे. अर्थात् अत्यार सुधी आचार्ये युगपद्वादनुं अवलम्बन लइने क्रमवादनुं खण्डन कर्तुं अने हवे तेओ स्वपक्ष तरीके भेदाभेदवाद स्थापी क्रमवाद - युगपवाद बन्नेनुं ओकसाथे खण्डन करे छे. टीकाकार भगवन्तनी आ मान्यतानो आधार "हंदि दुए णत्थि उवओगा'' अ पङ्क्ति छे के जे भेदाभेदवादी आचार्य तरफथी बोलाती होवानुं तेओओ दर्शाव्युं छे. आ परत्वे केटलीक समस्याओ
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हजु आचार्ये स्वसम्मत पक्ष तरीके भेदाभेदवादनी स्थापना ज न करी होय, भेदाभेदवादनुं मन्तव्य ज समजाव्युं न होय अने ओक गाथानी चोथी लीटीमां भेदाभेदवादने पकडी युगपद्वादनुं खण्डन अचानक ज चालु करी दे ओम बनवुं शक्य खरुं ?
आचार्ये अत्यार सुधी युगपद्वादनुं अवलम्बन क्रमवादना खण्डन माटे लीधुं अवुं आनुं तात्पर्य समजाय. परन्तु क्रमवादनुं खण्डन जे दलीलोथी अत्यार सुधी युगपद्वादे कर्तुं छे, ते सघळी दलीलो भेदाभेदवाद तरफथी पण प्रयोजवी शक्य हती ज. छतां पण आचार्य प्रथमथी ज भेदाभेदवाद न प्ररूपे अने युगपद्वादने मान्य करे ते विचारणीय नथी ? युगपवाद केवलज्ञान अने केवलदर्शनने समानकालीन स्वतन्त्र उपयोगो माने छे. ज्यारे भेदाभेदवाद से बन्नेने स्वतन्त्र उपयोगो नथी गणतो, पण