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अनुसन्धान-५५
शब्दनयोना आ स्वरूपने बराबर समजी लइओ तो सविकल्प अने निर्विकल्पना बे अर्थ करवानुं कारण आपोआप समजाशे. शब्द अने अर्थबन्ने वच्चे वाचक-वाच्यभाव सम्बन्ध छे. शब्दमां वाचकता रहे छे अने अर्थ ते वाचकताथी निरूपित वाच्यता धरावे छे. आपणे जो आ बेमांथी वाच्यताने अनुलक्षीने विचारीओ तो अेक पदार्थनिष्ठ वाच्यताना साम्प्रतनयमते अनेक विकल्पो सम्भवे छे, कारण के तेना मते पर्यायवाची शब्दोथी जणाती व्यक्ति ओक ज छे. जेमके घडामां घटपदवाच्यता पण छे अने कुम्भपदवाच्यता, कलशपदवाच्यता वगेरे पण छे. पण समभिरूढ अने ओवम्भूत नयोना मते ओक पदार्थनिष्ठ वाच्यतामां विकल्पोनो सद्भाव नथी, कारण के आ नयो संज्ञाभेदे अर्थभेद मानता होवाथी, ओ नयोना मते अेक पदार्थ बे शब्दोथी वाच्य होय ते सम्भवित ज नथी. आम, ओक पदार्थनिष्ठ वाच्यताना उपलक्ष्ये साम्प्रतनयमां सविकल्प- विकल्पोवाळो वचनमार्ग छे, ज्यारे समभिरूढ-अवम्भूतमां निर्विकल्प- विकल्पो वगरनो वचनमार्ग छे.
हवे, जो आपणे ओक-अर्थनिष्ठ वाच्यताने नहीं, पण ओक-शब्दनिष्ठ वाचकताने लक्ष्यमां राखीने विचारीओ तो, साम्प्रतनय अने समभिरूढनयना मते वाचकता सामान्यने आश्रित छे; कारण के साम्प्रतनय घटशब्दना प्रवृत्तिनिमित्त तरीके घटत्वजातिने पकडे छे के जे कुम्भ, कलश वगेरे अनेक शब्दोना प्रवृत्तिनिमित्तभूत' छे अने घटनी अनेक अवस्थाओमा अनुगत छे. अ ज रीते पदार्थनी विशिष्ट अवस्था पण संकळायेली होय छे. अवम्भूत नय आ वातने मुख्य गणी पदथी थतो पदार्थनो बोध ते पदथी सूचवाती विशिष्ट अवस्था साथे ज स्वीकारे छे. आ ज वातने जुदी रीते जोइओ तो तेनो मतलब ओ थाय के विशिष्ट अवस्था धरावतो पदार्थ ज ते विशिष्ट अवस्था सूचवनार पदथी वाच्य छे. अवम्भूत नयनी शास्त्रीय प्ररूपणा आ जुदी रीते जणातां मतलबने
ज अनुसरे छे. १. अहीं प्रश्न थइ शके के कुम्भ, कलश वगेरे शब्दोनी प्रवृत्तिमां घटत्वजाति कई रीते निमित्त
बने ? कुम्भत्व, कलशत्व केम नहीं ? आनुं समाधान ओ ज छे के घटत्व, कुम्भत्व, कलशत्व वगेरे शब्दो ओक विशिष्ट स्वरूप ज सूचवे छे के जे सकल घटव्यक्तिमां वर्तमान छे. आ स्वरूप ज घट, कुम्भ, कलश वगेरे शब्दोनुं प्रवृत्तिनिमित्त छे. पण आ स्वरुपने बीजा कोई शब्दोथी ओळखावतुं शक्य न होवाथी; घटत्व, कुम्भत्व, कलशत्व वगेरे शब्दोथी ओळखाववामां आवे छे. तेमां पण घटत्व अने कुम्भत्व-कलशत्व जुदी वस्तु छे ओवो व्यामोह न थाय अटले घटत्वने ज कुम्भ, कलश वगेरे शब्दोनुं प्रवृत्तिनिमित्त समजाववामां आवे छे. 'व्यक्तेरभेदो जातिबाधकः' आवो जे न्यायदर्शननो नियम छे तेनुं तात्पर्य पण उपरोक्त ज छे.