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मई २०११
समभिरूढ पण घटशब्दना प्रवृत्तिनिमित्त तरीके 'जलधारणयोग्यताने ज ग्रहण करे छे के जे, पाणी धारण करवुं धारण न करवुं जेवी घटनी अनेक अवस्थाओमां अनुगत होवाथी सामान्यधर्म ज छे. परन्तु अवम्भूतनयमते शब्दनिष्ठ वाचकता विशेषने आश्रित छे, कारण के ते घटपदना प्रवृत्तिनिमित्त तरीके जलधारणक्रियारूप विशेषने ज पकडे छे, ते सिवाय तेना प्रवृत्तिनिमित्त तरीके तेने बीजो कोई विकल्प मान्य नथी. आम, वाचकताने अनुलक्षीने साम्प्रत अने समभिरूढमां सविकल्प - सामान्याश्रित वचनव्यवहार छे, ज्यारे अवम्भूतमां निर्विकल्प - विशेषाश्रित वचनमार्ग छे. सामान्य अनेक विकल्पोनुं समावेशक होवाथी सविकल्प पण कहेवाय छे अने विशेषमां कोई विकल्प सम्भवता न होवाथी ते निर्विकल्प तरीके पण ओळखाय छे, ते वात आपणे अगाउ जोई गया छीओ.
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आम, वाच्यता अने वाचकताने अनुलक्षीने सविकल्प - निर्विकल्पना अर्थो बदलाय छे. अने तेमां पण साम्प्रतनयनो वचनमार्ग बन्ने वखत सविकल्प, अवम्भूतनो बन्ने वखत निर्विकल्प अने समभिरूढनो वाच्यता वखते निर्विकल्प अने वाचकता वखते सविकल्प बने छे.
हवे टीकामां देखाडेला आ गाथाना अर्थो जोइओ : टीकामां आ गाथानुं उत्थान अ विचारभूमिकामांथी देखाडवामां आव्युं छे के 'सप्तभंगीना मूल आधार तो द्रव्यार्थिक अने पर्यायार्थिक नयो ज छे, मतलब के आ नयोना उत्तरभेदो ज ते ते भांगानी प्रवृत्तिमां निमित्त छे. पण कया नयोमां कया भांगा समजवा'' - आ अंगेनी विचारभूमिका ओक ज होवा छतां टीकामां गाथाना बे विभिन्न अर्थो देखाडवामां आव्या छे. जोके अहीं ओक वात खास ध्यानमां राखवानी छे के बन्ने अर्थो वखते गाथाना पूर्वार्धनो अर्थ तो सरखो ज रहे छे; कारण के टीका मुजब पूर्वार्ध अर्थनयोने अनुलक्षीने छे. अने अर्थनयो तो अर्थगत धर्मोने ज लक्ष्यमां ले छे. आ अर्थगत धर्मो आपेक्षिक ज सम्भवता होवाथी, तेमनी ओ आपेक्षिकताने सूचवनारो पूर्णबोध सप्तभंगीमां ज पर्यवसित
१. समभिरूढनयमते घडो जलधारण न करतो होय त्यारे पण घटशब्दथी वाच्य बने छे. तेथी ते जलधारणक्रियाने नहीं, पण तेवी क्रियाने करवानी क्षमताने ज प्रवृत्तिनिमित्त गणे छे तेम समजवुं जोइओ.