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________________ मई २०११ ९७ नयोनी अपेक्षाओ नथी. तेथी धारोके पांच नयनी भिन्न मान्यता होय तो दश भांगा तो अना ज थाय. तेमां अवक्तव्यभंग अने संयोगीभांगा उमेरो तो भंगसंख्या केटली बधी वधी जाय ? अने तो त्यां सप्तभंगीनो नियम कई रीते सचवाशे ? __ "गुरु : त्यां ओकनयने सम्मत अर्थने मुख्य गणवो अने अन्यनय सम्मत अर्थाने गौण बनाववा. पछी जेने मुख्य बनाव्यो होय तेना आपेक्षिक अस्तित्वनो प्रतिपादक प्रथमभंग अने तेना अन्यनयोना मते निषेधनो द्वितीयभंग करवो. बधा नयोनी अपेक्षाओ अवक्तव्य भंग तो सर्जावानो ज छे अने आ त्रणना संयोगात्मक ४-७ भांगा पण आपोआप रचावाना छे. आ रीते अक सप्तभंगी थशे. पछी बीजा नयने सम्मत अर्थने ते ज रीते, मुख्य बनावी तेनी सप्तभंगी करवी. आ रीते अनुक्रमे सर्व नयोनी सप्तभंगी करवी. अटले परिपूर्ण बोध पण थइ जशे अने सप्तभंगीनो नियम पण सचवाशे." उपा. श्रीयशोविजयजीओ आ समाधाननो निषेध तो नथी कर्यो, पण पोताना तरफथी नवं समाधान सूचव्युं छे – “शास्त्रोमां प्रमाणवाक्य, लक्षण ओ देखाडवामां आव्युं छे के 'जे वाक्यमां सकलनयो, तात्पर्य समाइ जाय छे ते प्रमाणवाक्य.' हवे, घटगत अस्तित्वादिने लगता सात विकल्पो सम्भवे छे अने तेथी ते सातेना प्रतिपादक सप्तभंग्यात्मक महावाक्यने ज प्रमाणवाक्य गणवामां आवे छे. पण अनुं तात्पर्य ओ नथी के बधे सात भांगा सर्जावा ज जोइओ. कारण के ओछा भांगे पण जो पूर्ण बोध थइ जाय तो ओटला भांगाना समूहने ज प्रमाणवाक्य कहेवामां शुं वांधो ? तेथी प्रदेशादि स्थळे जेटला नयोनुं विभिन्न मन्तव्य होय, ते सघळां मन्तव्योने स्यात्कारथी चिह्नित करी दइओ अने 'स्यात् षण्णां प्रदेशः, पञ्चानां प्रदेशः, पञ्चप्रकारः प्रदेशः....' अम तेओनो उपन्यास करी दइओ तो ओ ओक ज भांगामां सघळा नयो, मन्तव्य समाइ जवाथी आ ओक ज वाक्य प्रमाणवाक्य थइ शके छे. अने सात भांगाथी वधारे भांगा न थवानो नियम पण सचवाइ जाय छे." हवे आ समाधाननी सामे ओ प्रश्न उपस्थित थाय छे के 'परिपूर्ण बोध सप्तभंगीथी ज थाय' ओ नियमनो अर्थ फक्त ओ ज नथी के 'सातथी वधु भांगा न थाय', परन्तु अ पण छे के 'परिपूर्ण बोध माटे सात भांगा होवा
SR No.229674
Book TitleSanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokyamandanvijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size367 KB
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