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अनुसन्धान-५८
निह्नव रोहगुप्त, श्रीगुप्ताचार्य अने त्रैराशिकमत
मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
प्राचीन काळे जे श्रमणो जैन परम्परामां ज दीक्षित होवा छतां जिनेश्वर भगवन्तोनो अने तेओनां वचनोनो तिरस्कार करनार थया तेओ 'निह्नव' तरीके ओळखाया हता. वीरनिर्वाणना सातमा सैका सुधीमां आवी 'निह्नव' तरीके ओळखाती कुल आठ व्यक्तिओ थई हती. जेमां छठ्ठा निह्नव तरीके रोहगुप्त गणाय छे.
रोहगुप्तनी निह्नव बनवानी घटना संक्षेपमां जोइओ तो - रोहगुप्त अन्तरञ्जिका नामनी नगरीमा बिराजमान श्रीगुप्ताचार्यने वन्दन करवा आवे छे. त्यां आगळ पोट्टशाल नामना मेली विद्याओना जाणकार परिव्राजकनुं वाद माटेनुं आह्वान स्वीकारी तेनो पराभव करे छे अने श्रीगुप्ताचार्ये आपेली विद्याओना बळे पोट्टशालनी मेली विद्याओनो पण ते नाश करे छे. आ वादमां जीतवा माटे तेमणे जैनदर्शनने मान्य नहीं ओवी जीव, अजीव अने नोजीव – एम त्रण राशिनी प्ररूपणा करी हती, माटे ते बदल श्रीगुप्ताचार्य तेमने माफी मांगवानुं जणावे छे, जेनो रोहगुप्त अभिमानवश अस्वीकार करे छे. अटलुं ज नहीं, पण पोतानी वात साची ज हती तेवी ममत ते पकडी राखे छे. श्रीगुप्ताचार्य तेमने छ महिना सुधी समजावे छे, पण ते समजवा माटे बिलकुल तैयार न थतां तेमने 'निह्नव' तरीके जाहेर करी संघबहार मूके छे.१ ।
आ घटना परथी अटलुं तो स्पष्ट ज छे के रोहगुप्तथी श्रीगुप्ताचार्य श्रमणपर्यायमां ज्येष्ठ हता अने तेमने माटे श्रद्धेय पण हता. परन्तु रोहगुप्त श्रीगुप्ताचार्यना पोताना ज दीक्षाशिष्य हता के नहीं ते बाबतमां मतभेद छे. एक तरफ बन्ने वच्चे गुरु-शिष्यभाव हतो ओवी व्यापक प्रसिद्धि छे.२ तो बीजी बाजु कल्पसूत्रगत स्थविरावली के जे प्रायः श्रीदेवर्द्धिगणिनी रचेली छे अथवा तो तेमना समयमां रचाई छे, तेमां रोहगुप्तने आर्य महागिरिना शिष्य तरीके ओळखाववामां आव्या छे. १. घटनाना विस्तृत वर्णन माटे जुओ - वि.भाष्य - गाथा २४५१ थी आगळ २. अन्तरञ्जिकायां पुर्यां भूतमहोद्यानस्थ-श्रीगुप्ताचार्यशिष्यो रोहगुप्तो...- कल्पकिरणावली