________________
१५२
अनुसन्धान ४९
गया है कि नारदद्वारा उपस्थित कलहों का परिणाम अन्तिमत: अच्छा और कल्याणकर होता है।
हरिश्चन्द्र से वरुणदेवता के प्रीत्यर्थ यज्ञ करने की सलाह देकर पुत्रप्राप्ति करवाना तथा बाद में इन्द्र और वरुण के आपसी कलह का फायदा उठवाकर 'नरमेध' टालकर उस पुत्र को इन्द्र के द्वारा बचाना यह सब कार्य 'नारद' बहुत ही कुशलता से करते हैं । यह सब वृत्तान्त ऐतरेय ब्राह्मण से प्राप्त होता है ।३५ यद्यपि ऐतरेय ब्राह्मणने नारद की कलहप्रियता सूचित की है तथापि उसके परिणाम अन्तिमतः भले ही होते हैं । इस कथा में ऐतरेय ब्राह्मण ने नारद की नरमेधविरोधिता तथा उनकी राजनीतिपटुता पर प्रकाश डाला है । ऋग्वेद में चित्रित काण्व नारद की व्यक्तिरेखा से ये दो अंश अच्छी तरह मिलतेजुलते हैं ।
रामायण के उत्तरकाण्ड में रावण नारद से कहता है कि युद्ध के दृश्य देखना आपको बहुत ही प्रिय है ।३६ रामायण के इस कथाभाग में यह सूचित नहीं किया है कि नारद युद्ध करवाते हैं लेकिन यही युद्धप्रियता का अंश ज्ञाताधर्मकथा ने उठाकर स्पष्ट शब्द में कहा है कि यह नारद 'कलहजुद्धकोलाहलप्पिय' तथा 'भंडणाभिलासी' है।
स्वर्ग से पारिजातक का फूल लाकर नारद, सत्यभामा और रुक्मिणी में कलह करवाते हैं तथा सत्यभामा से कृष्ण का दान देकर उसे प्रतिबोधित करके कृष्ण को फिर वापस देते हैं । विष्णुपुराण के इन कथाओं में नारद की कलहप्रियता दृग्गोचर होती है। कथा की रचना तथा शब्दयोजना इस कुशलता से ही है कि उससे नारद के मन की दषितता नहीं दिखायी देती लेकिन उसका हँसीमजाकवाला स्वभाव प्रगट होता है ।।
मार्कण्डेयपुराण के एक प्रसंग के अनुसार नारद, इन्द्रसभा में जाकर अप्सराओं का आपस में कलह करवाता है ।३८ इस कलह के पीछे दुर्वासऋषि को अन्तर्मुख करवाने का उद्देश्य स्पष्टतः दिखायी देता है।
भागवतपुराण, विष्णुपुराण, मार्कण्डेयपुराण में नारद के स्त्रियों के सम्पर्क में आने की तथा निरासक्त ब्रह्मचर्यपालन की जो बात उठायी है,
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org