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अनुसन्धान-५०
न चल्यो नवी कोप्यो तही भषइ जाम सीआलि । अहो अहो दूखर करइ अवंती ज सुकमाल ॥६२॥ श्रावक दूखर देख्य करि तुठो सुरवर सार । खुसी थईनं आपतो मणिमइ कुडल च्यार ॥६३॥ श्रावक सोय मीथलां गयो मल्यो कुभनि मानि । कुडल दो तीहा दीइ घाल्या मली कानि ॥६४॥ श्रावक त्याहाथी संच आव्यो चंपामाहि । अंगरायनिं ते मल्यों कुडल आप्यां त्याहि ॥६५॥ भूपिं साहा संतोषीओ पूछी अचरीत वात ।
कहइ मली कुमरीतणुं दीठू रूप वीख्यात ॥ ६५ | (६६)|| नारि ध्यननिं कारणं जण जो णासो जाय ।
सुणी भुप विल हुआ दुत पाठवइ राय ||६६ । (६७)॥ ॥ चोपई ॥
एणइ अवसरि कुंणाला राय रूंषी (पी) भुपना सहु गुण गाय । नारी धारणी तेनिं कही बिटी सबाहु सुदर लही ||६७ | (६८) | वरसगाठि दिन पुत्रीतणो घरि ओछव तव माड्यो घणो । पूत्रीनिं शणगारइ माय खोलइ बइसारइ तव राय ॥६८॥ (६९)| पूछइ सवी स्यभा ते माहिं अस्युं रूप दीठं कुणि हि । बइ करजोडी बोल्यो दूत मलीरुप जगम्हा अदभुत ||६९| (७०) || नारी अंब ईखुरस वाढ वातिं नरनी गलती डांढ ।
रूपिराय हुई ईच्छया घणी दूत मोकल्यो मीथला भणी ॥७०॥ (७१) ॥ मलि कानिं कुडल हवइ दोय साधि उंषडी तेहनी जोय । सोनीनं तेडइ तेणइ ठाय मेल्यों साधि कहइ कुभराय ॥ ७१ ॥ ( ७२)। एनी साधि मेली नवी जाय कोहो तो नवा नींपाईई राय ।
एणइ वचने खीयो भुपाल पूर बाहिर काढ्यो समकाल ॥७२।(७३)॥ शंखराय कइ आव्या तेह भाख्यं वीतक हुतुं जेह ।
रूप वखाणुं मली तणुं वातिं मोह्यो राजा घणुं ॥७३|(७४||
धन नारी परनंद्या मान न दीइ त्याह जोगेदर कान ।
बीजानुं मन न रहइ ठामि दूत मोकल्यो मली कामि ॥७४|(७५)॥