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________________ डिसेम्बर-२००९ ११७ बोल्यो तव सुबधी परधान भुपति तुम म करो अभीमान । दादुर जलि ऊंदकतो अती जाणइ कुप समुं को नथी ॥५०॥ त्यम तूम राय वखाणो दडो मिं दीठो छइ एहथी वडो । मली-म्होछविं दीठो तदा वरसगाठि हुई स्त्री जदा ॥५१॥ नारि कुमारी जाणी करी राइं मंत्रीनिं पूछयुं फरी । ते नारिनुं कस्युं सरुप मंत्री कहइ यम देवीरूप ॥५२॥ ॥ दूहा ॥ गाहा-गाथइ नवि रीझीओ । रीषभ कहइ रागेण । रंभा-रूप्य न भेदीओ जोगी के दरीद्रेण ॥५३॥ ॥ चोपई ॥ दारीद्री न लहइ रसभेह सुणी वात राजा हरखेह । नारी रूप लडं अद्भुत मीथलाम्हा मोकलीओ दुत ॥५४॥ एणइ अवसरि चंपानो धणी दूतो(?) मोकलइ कंन्या भणी । सोय कथा सूणतां स्युभ थाय घणा कालनुं पातिग जाय ॥५५॥ अरहनक श्रावकम्हा शरइ चंपामाहा ते रहइवू करइ । धन काजि ते चढीओ वाहाणि इंद्र वखाणइ बहु गुण जाणि ॥५६।। समकीतस्युं जेहनि वरत बार पडीकमणा पूजा वीवहार । न चलइ धर्मथी घणो ववेक सुणी देवता आव्यो एक ॥५७।। काउछर्ग ध्यानि श्रावक रहइ आवी देव तस एहेवू कहइ । मुक्य धर्म खोटो शु करइ श्रावक वात हईइ नवि धरइ ॥५८॥ आकाशमाहिं ऊछालु वाण ध्यान न चूकइ श्रावक जाण । देविं परीसहि कीधो धणो धर्म न मुकइ ते आपणो ॥५९॥ ऊतम साध तणी ए सीम विरि मरइ नवि खंडइ नीम । स्त्रीअक्रपा रोवत शणगार (?) बीहीकिं नवी छंडइ व्रत-भार ॥६०॥ ॥ दूहा ॥ वीरवचननि जाणतो सकल भाव समझेह । अस्यो साध बहु पूरषना बहुअ वचन खमेह ॥६१॥
SR No.229668
Book TitleMallinath no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size142 KB
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