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अनुसन्धान- ५६
अमां अपवादभूत नथी. ओटले मनःपर्यवज्ञानना उपयोग समये सौप्रथम मनः स्कन्धो ज सामान्यपणे देखाय छे (-अवधिदर्शन) अने त्यारबाद चोक्कस मनः स्कन्धोनुं विशेषथी ज्ञान थाय छे (-मनः पर्यवज्ञान). आम मनः स्कन्धविषयक ज्ञान अने दर्शन बन्ने प्रवर्ते छे अने ते ज वात 'खंधे जाणइ पासइ' कहीने सूचवाइ होय एवं लागे छे.
हवे अहीं ओक महत्त्वनी समस्या सर्जाइ शके तेम छे के जो मन:पर्यवज्ञान पूर्वे अवधिदर्शन अनिवार्य होय तो भगवतीजी - आशीविषोद्देशकमां मन:पर्यवज्ञानीने अवधिदर्शन न पण होय ओम शा माटे कह्युं छे ?
आनुं समाधान ओम जणाय छे के प्रस्तुत कथन ओवा मन:पर्यवज्ञानीने अनुलक्षीने छे के जेमने मति - श्रुत पछी अवधिज्ञानने बदले सीधुं ज मनः पर्यव प्राप्त थयुं होय. आवा महात्माने अवधिज्ञानावरणनो क्षयोपशम न होवाथी अवधिदर्शन पण नथी होतुं. पण अनो अर्थ से नथी के तेओने मनः स्कन्धो सामान्यरूपे न देखाय. मनः पर्यवज्ञानथी मनः स्कन्धोने विशेषरूपे जाणतां पहेलां तेमनुं सामान्यदर्शन अनिवार्य छे, अने आ सामान्यदर्शन अवधिदर्शनना अभावमां तेवी विशिष्ट कोटिना अचक्षुर्दर्शनथी सम्पन्न थाय छे तेम मानवुं पडे. ओक वात तो नक्की छे के मनः पर्यवज्ञाननी प्राप्ति माटे विशिष्ट लब्धिओथी सम्पन्न होवुं अनिवार्य छे अने आवी विशिष्ट लब्धिओ धरावता महात्मानां मति - श्रुत ज्ञान तेम ज चक्षु-अचक्षु दर्शन पण विशिष्ट कोटिनां ज होय छे. तेथी ते महात्मा तेवा विशिष्ट कोटिना अचक्षुर्दर्शनना बळे मनःस्कन्धोने पण जोइ ज शके. जो के उपलब्ध कथासाहित्यमां ओवो ओक पण दाखलो नथी मळतो के जेमां अवधिज्ञान वगर मन:पर्यव प्राप्त थयुं होय. तेथी ओम जणाय छे के आवी परिस्थिति भाग्ये ज सर्जाती हशे अने तेथी व्यापकताने अनुलक्षीने मनःपर्यवज्ञानीने अवधिदर्शनोपयोग अनिवार्य गणवामां आवतो हशे निष्कर्ष अ ज छे के मन:पर्यवज्ञानीने पण मनः स्कन्धोनुं सामान्यदर्शन अनिवार्य छे. पछी अ दर्शन अवधिदर्शनना बळे थाय के श्रुतकेवली जेम विशिष्ट श्रुतज्ञानना बळे सर्व वस्तुने जाणी शके छे तेम विशिष्ट अचक्षुर्दर्शनना बळे थाय.
दर्शन अंगेनी आ समग्र चर्चा शास्त्रोना सहारे ज थइ होवा छतां महदंशे