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अनुसन्धान-५६
समय माटे टके छे. अल्पकालीनता तो घणीवार ओटली बधी होय छे के आपणने निराकार स्थितिनो ख्याल पण नथी आवतो. शास्त्रोमां आ ज कारणथी निराकार स्थितिने अव्यक्त कहेवामां आवी छे. १ निराकार स्थितिनी आ अल्पकालीनता आत्मानी प्रबल ग्रहणशक्तिने आभारी छे. कोई पण वस्तुनो यथासम्भव वधु ने वधु स्पष्ट बोध करवो आत्मानो सहज स्वभाव छे. आ स्वभाववश ঔ बहु ज झडपथी निराकारबोधनी विषयभूत घणी बधी वस्तुओमांथी कोईकने अपेक्षाकृत प्राधान्य आपी तेना विशेषबोध माटेनी प्रक्रिया आरम्भी दे छे. आ प्रक्रियाना आरम्भनी साथे ज बोध सविषयक - चोक्कस विषय धरावतो बनी जाय छे. अने वस्तुनो अल्प मात्रामां विशेष बोध पण थयो होवाथी बोधनो अर्थने अनुरूप आकार रचाइ जाय छे, अर्थात् बोध साकार बने छे. विशेषबोधनी आ प्रक्रिया जेम जेम आगळ वधती जाय, तेम तेम वधु ने वधु स्पष्ट आकार रचातो जाय छे. आ तमाम साकार अवस्थाओमां जो के चोक्कस वस्तुनुं जोवानुं चालु पण होइ शके छे; तो पण जाणवानी मुख्यता होवाथी आ साकार अवस्थाओ 'ज्ञान' ज गणाय छे. मतिज्ञानशक्तिनो चक्षु द्वारा थतो आ साकार उपयोग ज 'चाक्षुष मतिज्ञान' कहेवाय छे.
उपर जे चक्षु अने घणी बधी वस्तुओना सन्दर्भे निराकार-साकार स्थिति वर्णवी, ते चक्षु अने ओक ज वस्तुना घणा बधा पर्यायोने अंगे पण समजी शकाय.
साकार-निराकार अवस्थानी परावृत्ति स्वभावथी ज अन्तर्मुहूर्ते अन्तर्मुहूर्ते थया करे छे, कारण के एक ज स्थाने अन्तर्मुहूर्तथी वधु समय अवधान टकतुं ज नथी. २
आगमिक व्यवस्थामां ज्ञान पूर्वे दर्शन कई रीते अनिवार्य बने छे ते तत्त्वार्थ. २.९नी सिद्धसेनीय वृत्तिना आधारे समजीओ. आ व्यवस्था मुजब पदार्थनो पोताना पर्यायो साथेनो विशिष्ट (specific) निर्देश ज आकार गणाय छे. आ आकार वस्तुने जोवानी प्रथम क्षणे ज नथी रचातो ते अनुभवसिद्ध छे. प्रथम क्षणथी मांडीने अमुक समय सुधी तो घणी बधी वस्तुओ के घणा ‘छद्मस्थानामनाकाराद्धाऽल्पत्वादेवाऽव्यक्ता" तत्त्वार्थ. सिद्ध.टी.
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न चाऽन्तर्मुहूर्तादुपर्येकत्राऽवधानमस्ति वस्तुनि, प्रत्यक्षमेतत्, अनाकाराद्धा साकाराद्धा द्वयपरावृत्तिश्च प्राणिनां स्वभावादुपजायमाना स्वसंवेद्या च - तत्त्वार्थ सिद्ध. टी. - २.९