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मई २०११
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गहुंली अने भास गीतो ॥
रामचंद के वागि – ए देशी ॥ चंपानयरी उद्यान सुरतरु महुरि रह्यो री । वीर पटोधर धीर सुहम आय रह्यो री ॥१॥ जियक्रोध जीयमान माया लोभ तजै री । संपूरण श्रुतज्ञान जिनवर बिरुद भजै री ॥२॥ आश्रव५ विषय५ प्रमाद ५ निद्रा पंच तजै री । दसविध सामाचारि० षटविध जयणा भजै री ॥३॥ उपगारी धरै बार भावना तप पडिमा री । निःकारण जगबंधु रवि शशी मेह समा री ॥४॥ कंचनकमल विचालि बेंसी धर्म कह री । जिणथी भवियण लोय आतमतत्त्व लहैं री ॥५॥ कोणिक भूपतीनारि घुयली गोलिं करें री । माणिक मोती वधाय पुण्य भंडार भरै री ॥६॥ जिनसासननी भक्ती करतां पाप हणे री । सोहव सरिखें साद घुयली गीत भणे री ॥७॥
इति सोहम गणधर गुयलीगीतं ॥
चेलणा लावें गूयली गुरु ए रुडा, श्रेणिकनृप घरि नारि सजनी ए रुडा। सोहमसामी समोसर्या गु०, प्रभु पंचम गणधार स० ॥१॥ छत्रीस छत्रीसे गुणे गु०, शोभीत पुण्य पवीत्र स० । आगमवयण सुधारसे गु०, वरसी ठारै चित्त स० ॥२॥ पडिरूवादिक चौद छे गु०, खांत्यादिक दस धर्म स० । बारह भावन भावीया गु०, ए छत्रीसी मर्म स० ॥३॥ दंसण नाण चरणतणा गु०, तप आचारे युक्त स० । सत्य१० समाधि१० अलंकर्या गु०, सोल कषाये मुक्त स० ॥४॥