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अनुसन्धान-५५
श्रीगौतमस्वामि-चउपई ॥ गोयमसामी गुणनिलउ सोहगसिरि उरि हार । आराहउ आणंद भरि सुयकेवल सिणगार ॥१॥
चुपई ॥ गिरूया गणहर गोयमसामि रिद्धि वृद्धि जसु लीधइ नामि । रातिदिवस मुझ एह उच्छाइ प्रय(ह) उठी प्रणमुं तसु पाय ॥२॥ ब्रह्मवंशभूषण वसुभूति पुहवि प्रीया नररतन प्रसूति । इंद्रभूति तसु नामि पुत्र बीजो गोयम नाम पवीत ॥३॥ दउढ सहस तापस एक पात्र खीरि जिमाडी ततक्षण मात्र । ते वरीया न्याणे ततक्षिणा ए जाणे प्रभुनी दक्षिणा ॥४॥ दक्षण हस्त सिद्धि जस होय स जसु दीखइ तसु केवल होइ । आप पासि अणहूइ दान गोयम दीजइ इणि परि न्यान ॥५॥ वीरवयण अष्टापद शृंगि सोवनमय जिणहर उत्तंगि । जिण नीयलबधी वंदी देव केवल[ल]छि मनावी सेव ॥६॥ हेमकमल ऊपरि अणुसर्या सहस पचा[स]सुं परवर्या । चउवीसे जिन पूजा करी प्रभ(भु) ध्याउ उत्तम तप आदरी ॥७॥ आदि प्रणमंतां मायाबीज श्रीअरिहंतमनंतर लीज । गोयमसामी आगलि नमु मंत्र एह दीवाली-समु ॥८॥ गोयमनामइ लाभई राज गोयमनामइ सीझइ काज । नवनिधि अष्टमहासिद्धि मिलइ दोष गलइ सिवि संकट टलइ ॥९॥ कामधेनि घरि-अंगणि रमइ सुप्रसन्न जउ गोयम किमइ । क्षुद्रोपद्रव जाइ टली भावविभूषण न आवइ वली ॥१०॥ सिद्धि बुधि बहु लबधि भर्या तु गोयम चिंतामणि सर्या । जु तमे इच्छउ सुखसंतान इच्छउ अहिनिसि अतिबहुमान ॥ कवित ए जाप भणइ लही श्रीजयसागर बोलइ सही ॥११॥
इति श्रीगौतमस्वामिचउपइ संपूर्णः ॥