________________ फेब्रुआरी - 2012 145 1. जन सामान्य का मनोरञ्जन कर उन्हें जैन धर्म के प्रति आकर्षित करना / 2. मनोरञ्जन के साथ-साथ नायक आदि के सद्गुणों का परिचय देना। 3. शुभाशुभ कर्मों के परिणामो को दिखाकर पाठकों को सत्कर्मों या नैतिक आचरण के लिए प्रेरित करना / 4. शरीर की अशुचिता एवं सांसारिक सुखों की नश्वरता को दिखाकर वैराग्य की दिशा में प्रेरित करना / 5. किन्ही आपवादिक परिस्थितियों में अपवाद मार्ग के सेवन के औचित्य और अनौचित्य को स्पष्ट करना / पूर्वभवों या परवर्तीभवों के सुख-दुःखों की चर्चा के माध्यम से कर्म सिद्धान्त की पुष्टि करना / 7. दार्शनिक समस्याओं का उपयुक्त दृष्टान्त एवं संवादों के माध्यम से सहज रूप मे समाधान प्रस्तुत करना जैसे - आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि के रायपसेनीय के कथानक में राजा के तर्क और केशी द्वारा उनका उत्तर / इसी प्रकार क्रियमान कृत या अकृत है - इस सम्बन्ध में जमाली का कथानक और उसमें भी साड़ी जलने का प्रसंग / इस प्रकार हम देखते है कि जैन कथा साहित्य बहुउद्देशीय बहु आयामी और बहुभाषी होकर भी मुख्यतः उपदेशात्मक और आध्यात्मिक रहा है / उसका प्रमुख उद्देश्य निवृत्ति मार्ग का पोषण ही है / इस प्रकार वह सोद्देश्य और आध्यात्मिक मूल्यों का संस्थापक रहा है और लगभग तीन सहस्राब्दियों से निरन्तर रूप से प्रवाहमान है / संस्थापक निदेशक प्राच्यविद्यापीठ दुपाड़ा रोड, शाजापुर (म.प्र.) 465001